गुरुवार, 12 सितंबर 2013

बेईमानी

बात चाहे खेल की हो
या जंग की
अब ये लगभग निश्चित है कि
जीतना तुझे ही है …. जिंदगी !
वैसे भी जो तेरे लिए खेल है
वही मेरे लिए जंग
मैं इस खेल में हूँ ही इसलिए
तेरी जीत जीत लगे
मेरा समर्पण  या पलायन
तुझे वंचित कर देगा
जीत के सुख से
इसलिए हार निश्चित जानते हुए भी
बने रहना है इस खेल में
बचपन में लुकाछिपी खेलने के दौरान
सीखी गयी बेईमानी
अब, बड़े काम आ रही है !

- आनंद



बुधवार, 11 सितंबर 2013

मैं प्रेम में नहीं हूँ ...

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर महसूस करता हूँ
अपनी सांसों में एक खुशबू
एक नन्ही सी जान ने जैसे खरीद लिए हों
गुलाबों के खेत के खेत
अनायास याद आ जाती है
कस्तूरी और कस्तूरी मृग की कथा,
इन्द्रधनुषी आकाश से उतर कर ईश्वर जब स्वयं
बढ़ा दे दोस्ती का हाथ
तब बेमानी हो जाती है
सारी बातें
मिलने और बिछुड़ने की,
दसों दिशाओं में किसी की ऐसी अलौकिक उपस्थिति
पहले तो कभी नहीं रही !

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर काम करते-करते अचानक रुक जाते हैं हाथ
कोई इतना पास आ जाता है कि
पल भर को मन
बच्चा हो उठता है
उसे छूने की ललक में उठे हाथ
यन्त्र चालित से पहुँचते हैं
अपनी ही आँखों तक
आजकल ऐनक बार बार दुरस्त करते
रहने का मन होता है,
और आज से पहले...
अपने आँसू… कभी मोती नहीं लगे
न ही कभी हुई
उन्हें किसी के चरणों में चढ़ाने की
इतनी व्याकुलता !

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर प्रेम शायद हो मुझमें कहीं
जैसे विष में भी छुपी होती है औषधि
शोधन… निरंतर शोधन से
संभव है औषधि का जैसे प्रकट हो जाना
वैसे ही शायद संभव हो सके एक दिन
मेरा अर्पण,
जिसे स्वीकार भी कर सको तुम…  मेरे आराध्य,

माँ कहती है
भाव के घाव कभी नहीं भरते
प्रेम के भी अश्वत्त्थामा हुए हैं
जो कभी नहीं मरते…. !

- आनंद




सोमवार, 9 सितंबर 2013

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही
ख्वाबों से हकीक़त ही  हमेशा  बड़ी रही

मैं मौत से भी अपने तजुर्बे न कह सका
लछमन की तरह सर की तरफ वो खड़ी रही

इस जिंदगी ने इतना तवज्जो दिया मुझे
हरदम मेरे सुकून के पीछे पड़ी रही

आज़ाद इश्क़ ने तो मुझे भी किया मियाँ  
पर रूह मिरी क़ैद की खातिर अड़ी रही

अगले जनम में देखने की बात हुई है
'आनंद' तुझे बेवजह जल्दी बड़ी रही

- आनंद



गुरुवार, 5 सितंबर 2013

बेवकूफ़




(एक)

तुमसे आगे नहीं बढ़ पाई
न मेरी कविता
न मैं,
हाँ बढ़ गया वक़्त
एक दिन
धीरे से कान में कहता हुआ
'बेवकूफ़'...
मैंने चौंककर खुद को देखा
मुस्कराया
आश्वस्त हुआ
कि आख़िरी वक़्त में कुछ तो रहेगा
पहचान के लिए
तुम न सही
तुमसे मिला कोई नाम ही सही  !

(दो)

मुझे शांति चाहिए
बेशक उसका नाम मृत्यु हो
तुम्हें संघर्ष चाहिए
बेशक उसका नाम जीवन हो
तुम मुझे भगोड़ा कहते हो
और मैं तुम्हें 'लालसी'
दोनों
जितना सही हैं
उतना ही गलत
तुमसे विछोह
शांति के बाद का संघर्ष है
तुम्हारा साथ
संघर्ष के बाद की शांति है
जीवन के लिए दोनों जरूरी हैं
ठीक हम दोनों के साथ की तरह !

- आनंद

बुधवार, 28 अगस्त 2013

कृष्णा …. माधवा !




कृष्णा …. माधवा !
चराचर नायक ….
देख रहे हो न अपनी लीला भूमि को
देख रहे होगे जरूर … धर्म के क्षत्रपों को
और शासकों को भी
योगियों के मन में भोग की आतुरता भी
और आमजन की निरीहता भी
सुनी ही होगी दामिनी की आर्त पुकार
आखिर अपनी कृष्णा की भी तो सुनी थी आपने
अपनों की तो सभी सुन लेते हैं
आपतो अहेतुकी कृपा करने वाले
जीव मात्र पर करुणा  रखने वाले परम कृपालु हैं
भारत वर्ष को किस पाप का दंड मिल रहा है प्रभु !
हे कण कण में व्याप्त मेरे कान्हा
ये वक्त मुरली की तान का है या कि सुदर्शन चक्र का …?
आज सांकेतिक नहीं ….
सच में आ जाओ भक्तवत्सल
अवतरित हो जाओ हम चलती फिरती लाशों में
ताकि हर किशोर, तरुण, आबालवृद्ध
उठा ले चक्र
आज बहुत जरूरत है एक महासमर की
निष्काम कर्म योग भूल गया है यह देश
अब यहाँ भोग को ही
जीवन मान लिया गया है प्रभो
और पतन को ही
उन्नति !!


जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ माधव !
बहुत बक बक करने लगा हूँ न आजकल ?
पर क्या करूँ
अंतर की इस व्यथा को तुमसे न कहूँ
तो किससे कहूँ !!

- आनंद