रविवार, 12 मई 2013

मई का महीना


तुम तो जानती हो
मई का महीना
मेरे लिए एकदम वैसे ही होता है
जैसे वृन्दावन वालों के लिए फागुन
जैसे ईमान वालों के लिए रमज़ान
नींद खुलते ही अज़ान के सुरों के साथ ही
घुस आती है तुम्हारी याद
तुम्हें पहले से ही दिल तक पहुँचने की हर राह मालूम है
पूजा की चौकी पर अब नहीं होती तुम
आँसू अब भी होते हैं
पर वो पागलपन के दिन ही कुछ और थे
यकीन करो मई में घंटों निहारता रहता हूँ
कैलेण्डर को चुपचाप
किसी से कहता भी नहीं अब
कि किस तारीख में क्या ख़ास है
मुझपर अब तुम्हें भूल जाने का दबाव
पहले से बहुत ज्यादा है
ऐसे में मेरे पास और क्या चारा है
सिवाय इसके
कि मैं और जोर से पकड़ लेता हूँ
तुम्हारी यादों का दामन
हर बार
एक भयभीत बच्चे की तरह !

ऐसे में
मुझे अपना एक शेर बेसाख्ता याद आता है

'हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया
रिश्ता हमारा-आपका बस ज़ख्म भर का था'

_ आनंद

शनिवार, 11 मई 2013

माँ

बावरी हुई है मातु प्रेम प्रेम बोलि रही
तीन लोक डोलि डोलि खुद को थकायो है
गायो नाचि नाचि कै हिये की पीर बार बार
प्रेम पंथ मुझ से कपूत को दिखायो है 

भसम रमाये एकु जोगिया दिखाय गयो
कछु न सुहाय हाय जग ही भुलायो है
धाय धाय चढ़त अटारी महतारी मोरि
छोड़ि लोक लाज सभी काज बिसरायो है

पायो है महेश अंश दंश सभी दूरि भये
धूरि करि चित्त के विकार दिखलायो है
भूरि भूरि करत प्रसंशा जगवाले तासु
मातु ने आनंद को आनंद से मिलायो है

- आनंद 

शुक्रवार, 10 मई 2013

बैठा हुआ सूरज की अगन देख रहा हूँ

बैठा हुआ सूरज की अगन देख रहा हूँ
गोया तेरे जाने का सपन देख रहा हूँ

मेरी वजह से आपके चेहरे पे खिंची थी
मैं आजतक वो एक शिकन देख रहा हूँ

सदियों के जुल्मो-सब्र नुमाया है आप में
मत सोचिये मैं सिर्फ़ बदन देख रहा हूँ

दिखती कहाँ हैं आँख से तारों की दूरियाँ
ये कैसी आस है कि  गगन देख रहा हूँ

रंगों से मेरा बैर कहाँ ले चला मुझे
चूनर के रंग का ही कफ़न देख रहा हूँ

जुमले तमाम झूठ किये एक शख्स  ने
पत्थर के पिघलने का कथन देख रहा हूँ

'आनंद' इस तरह का नहीं, और काम में
जलने का मज़ा और जलन देख रहा हूँ

- आनंद 

शनिवार, 4 मई 2013

रुअक्कड़

मैंने देखा किसी तस्वीर में
तुमने पहनी है वही  साड़ी  जिसे हमने खरीदा था साथ-साथ
उस दिन तुमने जानबूझकर
सस्ती साड़ी  खरीदी थी न ?
तुम्हारी तस्वीरें रुलाती हैं बहुत
जब भी बातें करता हूँ उनसे
यादें उससे भी ज्यादा
बहुत रोकता हूँ खुद को
मगर अक्सर
इकतरफ़ा बातचीत में
पूछ ही लेता हूँ कि
क्या तुम्हे भी कभी
मेरी याद आती है  ?

और तभी उतारता  हूँ आँखों पर से चश्मा
निकलता हूँ जेब से रुमाल
और हँस पड़ता हूँ  याद करके
तुम्हारा दिया हुआ नाम 'रुअक्कड़'
तुम्हें रोना पसंद नहीं 
मैं कुछ भी तो तुम्हारी पसंद का नहीं कर पाता

यकीन करो मैं हँसता हूँ 
कभी कभी
जब मैं बहुत बेबस होता हूँ तब !

 - आनंद 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

इन दिनों

वह कहती है कि
तुम उस भूतनी को भूल क्यों नहीं जाते
हा हा हा हा हा हा हा
और कहती है कि
तुम्हारा अक्षर - अक्षर उसे पुकारता है आज भी
मुझे हज़ार गलियां देती है
और तुम्हें लाख,
वह यह भी कहती है कि वो चुड़ैल तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ती
तुम्हारी एक एक साँस में झलकती है वो

सच बताऊँ ?
इन दिनों
अच्छा लगता है जब कोई देखता है
मुझमे तुमको
और उसके बाद
बुरा भला कहता है तुमको,

इन दिनों
जाने कैसा हो गया हूँ मैं

- आनंद