गुरुवार, 9 अगस्त 2012

माँ का हरा रंग ...



उसके कानों में 
इन्द्रधनुष की बालियाँ हैं 
घनघमंड उसकी आँखों में बसते हैं 
उसके आँसुओं से 
दुनिया भर के मानसूनी जंगलों को 
जीवन मिलता है 
हरा सावन 
हरी चूड़ियाँ 
हरी हरी मेहँदी ... और 
जब वो नाचकर गाती है 'हरियाला बन्ना आया रे' 
तब
मैंने कई बार देखा है
वहाँ की ज़मीन हरी हो जाती है
कई बार जब वो अपने लिए
एक अदद हरा समन्दर खोजने निकलती है
एक साधू बाबा
उसकी राहों को बुहारता हुआ अक्सर दिख जाता है
ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर पर
हरे ग्रह की ओर जाती हुई
मेरी माँ
ढाई क़दमों में ही नाप लेती है
इस कायनात को
फ़कीर मुस्कराता है
और माँ भी !
फिर भी उसे खुद से शिकायत है
कि
ये आसमान नीला क्यों है
और
उसकी चमड़ी का रंग
हरा क्यों नहीं है !
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- आनंद द्विवेदी 
९ -०८-२०१२

सोमवार, 6 अगस्त 2012

टूटे न ख्वाबों की लड़ी



मुझे तुम्हारी आहट सुनाई पड़ी थी
पर मैं नींद में था
मैंने सोंचा भी कि आये हो तो
ख़्वाब तक तो आओगे ही
और मैं निश्चिन्त था
पर तुम कम थोड़े हो,
बाहर से ही लौट गए न
चलो अच्छा हुआ
वर्ना तुम जान लेते कि
किसी की पलकों में आकार ठहरना
किसी का सपना बन जाना
कैसा लगता है
मैं दुखी हूँ तुम्हारे लिए
पर मैं खुश हूँ हमारे लिए

न तुम बदले
न मैं
और न नींद के पक्ष में खड़ी
ये दुनिया !
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मुझे नींद में चलने की आदत है 
कई बार मैं 
वहाँ चला जाता हूँ 
जहाँ मुझे नहीं जाना चाहिए 
और कई बार तो 
वहाँ तक ... जहाँ से 
लौटना नामुमकिन है ! 
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मुंदी पलकों पर 
तुम्हारे होठों का एक एहतियात भरा खत... 
कुछ लिपियाँ 
बंद आँखों के लिए ही ईज़ाद की गयी हैं 

आँख खोलो तो 
सारे कमरे में हिना की खुशबू 
ख़्वाब और महक की यह जुगलबंदी ...? 

झूठे !
तुम अभी भी ख्वाबों में आते हो न !

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- आनंद  

३-६ अगस्त  २०१२ 

बुधवार, 25 जुलाई 2012

बदलाव चाहते हैं तो बदलाव कीजिये




काबा भी  खूब जाइए  काशी भी जाइए
पहले दिलों में प्यार के दीपक जलाइए

आँखों को नम न कीजिये यूँ बात बात पर 

दुनिया के ग़म भी देखिये  कुछ मुस्कराइए

फौरन से पेश्तर सुकून दिल को मिलेगा
बच्चों के साथ खेलिए उनको हंसाइये

महफ़िल में दिल का दर्द बयाँ कर चुकें हों तो
फ़ाका-क़शों  की बात भी थोड़ी चलाइये

सत्संग से मिलाद से  कुछ वक़्त बचे  तो
दो पल की किसी गरीब का बच्चा पढ़ाइये

बदलाव  चाहते  हैं  तो  बदलाव  कीजिये
नाहक न यहाँ मुल्क की कमियां गिनाइये

'आनंद' वहीं है  जहाँ दुनिया में  दर्द है
अपने को इस तरह से सभी का बनाइये

- आनंद
२५-०७-२०१२


शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

नश्तर (कुछ क्षणिकाएँ )



(एक) 

आज उसने 
मुझे एक कविता भेजी 
एक याद 
और साथ में 
थोड़ी सी ख़ामोशी 
उसका कहना है 
कि वो 
मुझे प्यार नहीं करती !

(दो)

जान लेने से पहले 
तुमने 
हर अहतियात बरता
कि 
मुझे कम से कम दर्द हो
और 
अंतिम वार से पहले तो तुमने 
प्यार भी किया 
शुक्रिया ! 

(तीन)


काश ..
एक वादा ही किया होता हमने 
काश ..
कुछ तो होता हमारे दरम्यान !!
टूटने के लिए भी 
कुछ तो होता 
सदायें 
टूटती कहाँ है 
वो तो 
बस या होती हैं
या
नहीं होती
एकदम मेरे वजूद कि तरह !!


(चार) 

यादें 
इंतज़ार है कब पाबंदी लगाओगे 
इन यादों पर |
तुम 
सब कुछ कर सकते हो 
बस मेरी सांसें ही बगावत कर जाती हैं 
जरा ठहर जाएँ 
तो इनका क्या बिगड़ जाएगा !!

(पाँच)

अब और कितना दूर जाओगे 
मेरी आवाज़ की भी एक सीमा है 
पीछे मुड़कर देखो तो 
मेरे लिए नहीं 
तुम्हारी अकड़ी गरदन को आराम मिलेगा !

(छः)

जब आप सप्तऋषियों के बगल में होंगे 
और ध्रुव तारे की तरह 
चमक रहें होंगे 
उस अँधेरी रात में 
यहाँ धरती से मैं ऊँगली उठाकर 
सबको बताऊंगा 
देखो.... वो रहे तुम !

(सात)
तुम्हारे बाद 

अब कोई ठहरता नहीं मेरे पास 
मेरे शरीर से 
तुम्हारी आत्मा की 
गंध आती है |

(आठ) 

अपनी दुनिया में मैं अकेला
अपने आसमान में चाँद
वो निहायत खुबसूरत
और मैं ...
निहायत किस्मत वाला
आज पूनम है
ज्वार केवल समन्दरों में ही नहीं आते 


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- आनंद द्विवेदी 
20-07-2012




बुधवार, 18 जुलाई 2012

समय ...



समय, 
सुना था हर दूरियाँ पाट देता है 
बहुत बलवान होता है 
पाया ठीक उल्टा,
सुना था हर ज़ख्म भर देता है ...
मैं जब भी ऐसा सोंचता हूँ मुस्करा पड़ता हूँ 
मैं खुश हूँ 
कि ऐसा नहीं कर पाया वो 
और इसीलिये 
मैंने इंतज़ार को 
वक्त से नापना बंद कर दिया है 

कैलेण्डर नहीं खरीदता अब मैं 
डायरी भी नहीं 
घड़ी बांधना पहले ही छोड़ चुका हूँ 
मुझे बड़े आराम से दिन निकलने का पता चल जाता है 
दिन ढलने का भी 
मेरे लिए अब इससे ज्यादा 
समय का कोई और महत्त्व नहीं ! 

- आनंद द्विवेदी 
१८-०७-२०१२