गुरुवार, 9 अगस्त 2012

माँ का हरा रंग ...



उसके कानों में 
इन्द्रधनुष की बालियाँ हैं 
घनघमंड उसकी आँखों में बसते हैं 
उसके आँसुओं से 
दुनिया भर के मानसूनी जंगलों को 
जीवन मिलता है 
हरा सावन 
हरी चूड़ियाँ 
हरी हरी मेहँदी ... और 
जब वो नाचकर गाती है 'हरियाला बन्ना आया रे' 
तब
मैंने कई बार देखा है
वहाँ की ज़मीन हरी हो जाती है
कई बार जब वो अपने लिए
एक अदद हरा समन्दर खोजने निकलती है
एक साधू बाबा
उसकी राहों को बुहारता हुआ अक्सर दिख जाता है
ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर पर
हरे ग्रह की ओर जाती हुई
मेरी माँ
ढाई क़दमों में ही नाप लेती है
इस कायनात को
फ़कीर मुस्कराता है
और माँ भी !
फिर भी उसे खुद से शिकायत है
कि
ये आसमान नीला क्यों है
और
उसकी चमड़ी का रंग
हरा क्यों नहीं है !
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- आनंद द्विवेदी 
९ -०८-२०१२

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