गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

डिफेक्टिव आइटम !



डिफेक्टिव आइटम !

मुझे
जरा बाद में पता चला
पर तुम्हे तो मालूम था ....
फिर
क्यों भेज दिया
मुझ जैसे डिफेक्टिव आइटम को
यहाँ ...? बोलो
क्वालिटी वालों के यहाँ भी  आर टी आई  लगाया
तो कहते हैं
प्रोडक्शन  में पता करो
यहाँ से ओ के  है रिपोर्ट
अब प्रोडक्शन में ....
अपने ब्रह्मा जी ...बुजुर्ग आदमी
वर्कलोड रोज का रोज बढ़ता जा रहा है
इन्फ्रास्टक्चर  वही पुराना
हो गयी चूक ....
पर अपना तो बैंड बज गया न !

फिर मैंने सोंचा
चलो रिजेक्ट का टैग तो लग ही गया है
शंकर जी को अप्रोच किया
भाई वापसी का जिम्मा तो उन्ही का है न
उफ्फ्फ
सालों इंतज़ार करो
कब जरा होश में हों तो अपनी बात कहूँ
कुछ पता ही नही चलता
एक दिन माँ ने
मेरी अर्जी  रख़ दी सामने
तो बोले
भगाओ.... इसे  
अभी यहाँ सारे अपने 'गणों' को खराब कर देगा
आदमी ठीक नही है
जानती हो तुम ...ये पागल भी प्रेम स्रेम वाला ......
और अभी इसका टाइम भी नही है
यहाँ आने का

अब तुम बताओ
माधव !
मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट का आइटम
कम्पनी वापस ले नही रही ...
अब आजकल इतना टफ कम्पटीशन
मार्केट में चल सकता नही
तो क्यों धक्के खिलवा रहे हो
इधर से उधर
इस दूकान से उस दूकान
..............
इसे मार्केट से उठा लो न
आखिर
मैंने सुना है
हर खोटा सिक्का
आपके पास आकर खरा हो जाता है
मुझे खरा नही होना
बस मुझे
चलन से बाहर कर दो
यही एक इल्तजा है
अब मत तड़पाओ माधव !!

-आनंद द्विवेदी २९/१२/२०११


रविवार, 25 दिसंबर 2011

"२०११" ...एक अन्तरंग बातचीत !




प्रिय २०११ !
जा रहे हो न
कभी नही आओगे अब
तुम्हारी तरह के ४३ और वर्ष
जा चुके हैं ऐसे ही
केवल समय के गतिमान होने का
बोध कराते हुए
मगर तुम !
तुमने जो दिया है
जो सौगातें
जो नेमतें
वो अद्वितीय हैं

तुम
बहुत हसीन थे
बहुत शक्तिशाली भी
मगर नियति को बदलने की क्षमता
नही थी तुम में भी

तुमने ही पहली बार बताया कि
खुशबू किसे कहते हैं
हवाएं कैसे गाती हैं
आसमान से गिरती बरसात की बूंदों में
पानी और शराब का अनुपात कितना होता है
तुमने ही बताया कि
जो आनंद पागल होने में है
वो होश में कहाँ ....
और ये भी कि
एक जोड़ी आँखों में
सारी दुनिया कि शराब से
ज्यादा नशा कैसे होता है
और फिर ये भी कि
एक जोड़ी आँखों में ही
एक सागर से ज्यादा
पानी
कैसे आ जाता है !

तुमने जाते जाते
अपना सबसे नायाब तोहफा दिया मुझे ...
फकीरी का
कुछ होने में वो सुख कहाँ
जो 'कुछ न' होने में है
मेरा यह अनुपम आनंद
केवल वही महसूस कर सकता है
जिसके पास........ कुछ न हो
पकड़ने में
वो आनंद कहाँ
जो छोड़ देने में है
पाने में वो मस्ती कहाँ
जो खो देने में है ...!

एक छोटी सी कसक
फिर भी है
तुम हर जाने वाले कि तरह
इतनी हड़बड़ी में क्यों हो
कुछ और ठहरते तो .....?
तुम्हें अच्छे से पता है कि
मुझको .....
इतनी जल्दी
किसी भी बात की
सालगिरह मनाना
जरा भी
अच्छा नही लगेगा !

खैर छोड़ो
मैं तुम्हें पूरे मन से विदाई देता हूँ
अब विदा
हमेशा के लिए !!!

-आनंद द्विवेदी  २५/१२/२०११



  

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

मेरा उठना... मेरा बैठना




मेरा उठना
मेरा बैठना 
मेरा बोलना
मेरी मौन 
मेरा हंसना 
मेरा रोना 
सब
तेरी ही तो अभिव्क्ति है
मेरा सारा जीवन
तेरा ही एक गीत है माधव !
इसे मैं जितना
शांत
और शांत होकर सुनता हूँ
तू उतना ही मेरे अंदर
गहरे
और गहरे
नाचने लगता है !!

लोग कहते हैं ....कि
तू
बहुत विराट है ,
"रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्माण्ड "
उफ्फ्फ
मैं तो डर ही जाऊंगा
मेरे से
इतना कहाँ संभलेगा
वैसे भी
मुझे इस तरह कि बातें
जरा भी अच्छी नहीं लगती
मैं जानता हूँ .... कि मैं
तुझे समझ नहीं सकता
(समझना चाहता भी नहीं )
पर मैं
तुझे जी सकता हूँ
जी रहा हूँ मैं
तुझे  !


इधर देख ... वैसे ही प्यार भर कर
और  कर दे ...पागल
अब होश में रहने का
जरा भी मन नहीं !

-आनंद द्विवेदी ९/१२/२०११

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर ..



आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर
या हर जबाब दे मुझे  या लाजबाब कर 

मैं  इश्क  करूंगा  हज़ार  बार करूंगा
तू जितना कर सके मेरा खाना खराब कर

या छीन  ले नज़र कि कोई ख्वाब न पालूं
या एक काम कर कि मेरा सच ये ख्वाब कर

या मयकशी से मेरा कोई वास्ता न रख
या ऐसा नशा दे कि मुझे ही शराब कर 

जा चाँद से कह दे कि मेरी छत से न गुजरे
या फिर उसे मेरी नज़र का माहताब कर

क्या जख्म था ये चाक जिगर कैसे बच गया  
कर वक़्त की कटार पर तू और आब कर

खारों पे ही खिला किये है गुल, ये सच है तो
'आनंद' के ग़मों को ही तू अब  गुलाब कर  |

-आनंद द्विवेदी २९-११-२०११

सोमवार, 28 नवंबर 2011

इतना काफी है एक उम्र बिताने के लिए



दौर-ए-गर्दिश में मुझे राह दिखाने के लिए
शुक्रिया आपका हर साथ निभाने के लिए

जिंदगी लौट के आया हूँ अंजुमन में तेरे
अब किसी गैर के कूचे में न जाने के लिए

बेरहम वक़्त से उम्मीद भला क्या करना
खुद ही जलना है यहाँ शम्मा जलाने के लिए

कसमे वादे, हसीन ख्वाब और रंज-ओ-ग़म
छोड़ आया हूँ मैं, ये काम जमाने के लिए

एक बेनाम सा अहसास और एक कसक
इतना काफी है एक  उम्र बिताने के लिए

थोड़े यादों के फूल थे,  जो बचा रक्खे थे
ये भी ले जाता हूँ मंदिर में चढ़ाने के लिये

साथ  'आनंद' का  अब  कौन भला चाहेगा
हाथ में कुछ नहीं दुनिया को दिखाने के लिए

-आनंद द्विवेदी २७/११/२०११