गुरुवार, 13 जनवरी 2011

ईश्वर देखता हूँ मैं !


एक अँधेरी गुफा...
अस्पष्ट भित्तियों पर उभरा है
बिलकुल स्पष्ट  ...हर दृश्य जिंदगी का !

इसमें है ....
घुट गया स्वाभिमान..
दुकानों पर उधार के बदले,
तौले गए सामन सा पैक है 'प्यार'.
एक विशेष लिफाफे में
मैंने पाया है इसे (प्यार को)
तराजू पर सारी जिंदगी चढाने के बाद!!

इसमें है....
इच्छाओं का संग्रह
उचित या अनुचित जो भी की हैं मैंने ईश्वर से
पाया है मैंने हर बार....
कुछ न पाने का विश्वाश,
देखा है अपने हर सपने को झूठ होते हुए,
इतने करीब से कि
मैं ही झूठा हो गया मालूम होता हूँ !!

इसमें है.....
एक आशा किसी को पाने की
नही-नही....
किसी पर न्योछावर हो जाने की,
झूठ या सच
वही जाने !

इसमें है....
एक ईश्वर 'भी'..
जो आँखों में झिलमिलाते मोतियों के बिम्ब में
बहुत धुंधला दिखाई देता है ,
जब कभी मैं....
नीलाम हो रहा होता हूँ किसी अनचाही जगह,
जब कभी मैं....
ख़रीदा जा रहा होता हूँ कहीं ताकत से,
जब कभी मैं....
टूट रहा होता हूँ किन्ही मजबूरियों से,
तब-तब...
मैं ईश्वर देखता हूँ,
बेबस अपने अन्दर........और....
मुस्कराता हुआ अपने बाहर !!

       --आनंद द्विवेदी २०-०१- १९९३ !

7 टिप्‍पणियां:

  1. मैं ईश्वर देखता हूँ,
    बेबस अपने अन्दर........और....
    मुस्कराता हुआ अपने बाहर !!

    भैया बाहर जो इश्वर दिखते हैं, उन्हें तो खुद बखुद हम प्रणाम कर लेते हैं, शीश झुख जाता है...लेकिन आपके अन्दर के इश्वर को शत शत नमन...!!

    भैया जब तुमने ये लिखा....१९९३ में ..........तब हम कॉलेज में थे....:) और साहित्य के क्लास में प्रेम की परिभाषा पढ़ते थे...:P

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  2. धन्यवाद मुकेश ,

    शायद तब हम प्रेम की कक्षा में जिन्दगी का पाठ पढ़ रहे थे !!!

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  3. भाई ..मैंने पढ़ा है ..जब बैलगाड़ी फस गई हो तो ..भगवान् नहीं आते निकालने //
    मैं ईश्वर देखता हूँ,
    बेबस अपने अन्दर........और....
    मुस्कराता हुआ अपने बाहर !!//
    पूरी कविता का सार इसी तिन लाईने में लगता है

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  4. जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

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  5. पाण्डेय जी आप पारखी हैं इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहिये !
    और माहेश्वरी जी ...अभी मैं इस दुनिया का नवागंतुक हूँ कामना कीजिये कि लिखने का यह सिलसिला रुके नही !

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  6. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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