गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

होता जा रहा हूँ...

धुन-ए-रुबाब होता जा रहा हूँ
बड़ा नायाब होता जा रहा हूँ

धड़कता हूँ किसी की धडकनों में
किसी का ख़्वाब होता जा रहा हूँ

फितरतन हूँ नहीं बेसब्र फिर भी
इधर बेताब होता जा रहा हूँ

तुम्हारे इश्क़ ने जब से छुआ है
मैं चश्म-ए-आब होता जा रहा हूँ

हुज़ूर-ए-अंजुमन में आ गया हूँ
पर-ए-सुर्खाब होता जा रहा हूँ

न यूँ हसरत से ताको आसमाँ को
मैं माहेताब होता जा रहा हूँ

वो इतनी नाज़ुकी से मिल रहे हैं
मैं खुद आदाब होता जा रहा हूँ

तिरे 'आनंद' की इक बूँद भर हूँ
जो अब सैलाब होता जा रहा हूँ

© आनंद

बुधवार, 27 सितंबर 2017

प्रेम के रंग

सबसे खूबसूरत होता है ये संसार
जब डूबा होता है प्रेम के रंगों में
उदात्त और उत्कृष्ट होता जाता है ,
हर रंग कुछ और निखरता जाता है
जब घुलता है नेह के साथ समर्पण भी.

अधिकार सबसे बड़ा शत्रु है
जो न जाने कब
संवेदनाओं में छुपकर सेंध लगा लेता
दिल की दुनिया में.

अधिकार से उपजी अपेक्षाएँ
अपेक्षाओं से जन्मी नादानियों में
माफ नहीं किये जाते प्रेमी
न ही खुद के और न ही प्रेम के द्वारा

सायास चुप्पियां,
बेवजह की व्यस्तता,
नपा-तुला जवाब..कितना कुछ होता है ऐसा
जो बता देता है कि सफल हुआ शत्रु का वार
प्रेम पर विजयी हुआ अधिकार

नियत है फिर छटपटाहट
ये सजा भी है और सीख भी
कि प्रेम में उतार वाली सीढ़ियों पर
बढ़ाया गया कदम होती है अपेक्षाएँ

सुनो भोलेराम !
प्रेम में लापरवाही से मत चलाना
रंग भरी एक भी कूची
समर्पण को ही रखना सर्वोच्च
भावों के पुष्प चुनने में रखना खास ख़्याल
कि उनके रंग और महक़ से प्रीतम को होती रहे
साफ, ताजी और खुली हवा का अहसास !

© आनंद

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

गालों का गुलाल

एक दिन जब
मुस्कराता हुआ ईश्वर
मेरी रूह पर वैधानिक चेतावनी सा
गोद रहा था ..प्रेम
मैं उसके हाथ से फिसल कर गिरा तुम्हारी मुंडेर पर
जहाँ तुमने धूप में डाल रखे थे अपने सतरंगी सपने
खुश्बुओं के परिंदों के लिए बिखेरे हुए थे
खिलखिलाहटों के दाने
उड़ते हुए दुपट्टे पर तैर रही थी
खुशियों और शैतानियों की जुगलबंदियाँ
तुम्हारी पलकों की गीली कोरों पर फँसी एक नन्ही बूँद
मेरी राह में आकर बोली
ऐ मुसाफ़िर... मैं ही हूँ तुम्हारी मंजिल
और आहिस्ता आहिस्ता नसों में उतर गया
तुम्हारे सुर्ख़ गालों का सारा ग़ुलाल
फिर एक दिन मैंने देखा
रुमाल में टँके गुलाब के नीचे अपने नाम का पहला अक्षर!

ओ मेरी जिंदगी
ले चल मुझे वहीं, जहाँ तूने कभी बो दिए थे
रेशमी बटुए से निकाल कर अपने अरमान
इससे पहले कि निर्मोही समय
हाथ छुड़ाकर निकलने की कोशिश करे
मुझे लौटानी हैं, किसी की उम्र भर की अमानतें
किताबों के बीच छुपाये गए बेशकीमती अहसास
आँखों मे कुछ चुलबुले ख़्वाब
और ढेर सारी नादानियों और शोखियों से भरी उसकी तमाम तस्वीरें ।

चल जल्दी चल
कि हमें रोपने हैं अभी भरोसे के कई पौधे 
और चहचहाते पंछियों से लेनी हैं
ढेर सारी दुआएँ !!

© आनंद

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

नशेड़ी आँखें


इन दिनों
नशेड़ी सपनों का
अड्डा हो गयी हैं
चश्मे के पीछे डरी हुई दुबकी रहने वाली मेरी आँखें,
उम्र
समाज
धर्म और कर्तव्य जैसे
कई नशामुक्ति केंद्रों का चक्कर काटने के बाद
अंततः मैंने रख दिया है इन्हें
तुम्हारी राहों पर
तुम्हारी हर आहट पर झूमने के लिए स्वतंत्र ।

© आनंद

सोमवार, 18 सितंबर 2017

पहला क़दम

याद है वो दिन ?
जब तुम पहली बार आयीं थीं
मेरे दिल की दहलीज पर
जरा सा खोलकर दरवाजे का पल्ला
झाँकी भर थीं
और बाकी बनी रही थीं चौखट के बाहर ही

जितनी अंदर आयीं वो भी प्रेम नहीं..प्रश्न लेकर
जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो
कि क्या यही है वो दर
जहाँ मुझे हमेशा से होना चाहिए था?
जैसे पूछना चाह रही हो
कि क्या यही है वो शख्स
जिसे बरसों पहले से मेरा होना चाहिए था?

संयोग था या नियति
या फिर मिल गया था
आसरा तुम्हारे सवालों को,
ठिकाना तुम्हारी तलाश को

न जाने कैसे और कब
चौखट से बाहर ठहरे तुम्हारे हिस्से ने
तुमसे ही बगावत कर दी
जिसमें शामिल था तुम्हारा दिल भी
और बढ़ा दिया था तुमने अपना पहला कदम
मेरे मन के वीरान आँगन में

अब जबकि
मेरे सीने के सफेद बाल
मुनादी कर रहे हैं मेरे परिपक्व प्रेम की
तुम कह देती हो अक्सर
'टीनएज हो गए हो तुम बिल्कुल'

सुनो !
मत बोला करो न ऐसे
एकदम लजा जाता हूँ मैं

क्या करूँ मैं
जो अब भी
सूना रहता है मेरा संसार
तुम्हारी पायल के संगीत बिना
खुशियां रहती हैं अधूरी
तुम्हारी मुस्कान के गीत बिना

तुम नहीं होतीं तो सब कुछ रहता है आस-पास ज्यों के त्यों
केवल मैं ही नहीं रह पाता
कहीं भी चैन से !

© आनंद