रविवार, 22 जनवरी 2017

सबको ज़ख्म दिखाने निकले

सबको ज़ख्म दिखाने निकले
हम भी क्या बेगाने निकले

पहले क़त्ल किया यारों ने
पीछे दीप जलाने निकले

जब पहुँचे हम हाल सुनाने
वो दिल को बहलाने निकले

उनकी इशरत* मेरी किस्मत
दोनों एक ठिकाने निकले

उनके बस का रोग नहीं ये
रह रह कर पछ्ताने निकले

दिल तो पहले ही उनका था
अब महसूल* चुकाने निकले

जीवन का हासिल क्या होता
हम केवल परवाने निकले

आप हश्र की चिंता करिये
हम तो धोखा खाने निकले

बिन देखे ही उम्र कट गयी
हम भी खूब दिवाने निकले

जिसे चाहिए वो ले जाये
हम आनंद लुटाने निकले

- आनंद

इशरत = मनोरंजन
महसूल = टैक्स, शुल्क

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

खुद को

तेरा दर्द सुख़न कर बैठा
मैं खुद को निर्धन कर बैठा

तेरा साथ खैर क्या मिलता
मैं खुद को दुश्मन कर बैठा

अमृत के किस्सों में पड़कर
मैं तो गरल वरण कर बैठा

ऐ दिल अब नुक्ताचीनी क्यों
जब खुद को अर्पण कर बैठा

पत्थर नहीं पिघलने वाले
मैं भी लाख जतन कर बैठा

'असल' दर्द का वापस दुनिया
थोड़ा  सूद ग़बन कर बैठा

दर्द  न देखा गया यार से
मुझको जिला-वतन कर बैठा

जाने किस सुख की चाहत में
मैं आनंद हवन कर बैठा

- आनंद



रविवार, 15 जनवरी 2017

ग़मों की सरपरस्ती में...

गज़ब का लुत्फ़ होता है दिल-ए-पुर-खूँ की मस्ती में
ज़िगर पर चोट खाये बिन मुकम्मल कौन हस्ती में

न जाने किस भरोसे पर मुझे माँझी कहा उसने
कई सूराख़ पहले से हैं इस जीवन की कश्ती में

हमारी देह का रावन तुम्हारी नेह की सीता
'लिविंग' में साथ रहते हैं नई दिल्ली की बस्ती में

तुम्हारी साझेदारी का कोई सामान क्यों बेचूँ
पड़ी रहने दो सब ग़ज़लें ये ग़म खुशियाँ गिरस्ती में

हमारे शहर् मत आना यहाँ सब काम उल्टे हैं
यहाँ 'आनंद' जिंदा है ग़मों की सरपरस्ती में

- आनंद

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

राम कहानी

मेरी राम कहानी लिख
कुछ आँखों का पानी लिख

ख्वाब हो गया अपनापन
तनहा उम्र नसानी लिख

तेरे बिन भी जिन्दा हैं
इतनी सी बेइमानी लिख

मगर जिंदगी चुप सी है
बिना खिले कुम्हलानी लिख

उनकी संगदिली गर लिख
मेरी भी मनमानी लिख

कुछ दुनिया के किस्से लिख
कुछ मेरी नादानी लिख

मेरी अब तक की बातें
सब नाकाम कहानी लिख

सरपट दौड़ हुआ जीवन
घाट घाट का पानी लिख

भीड़ नहीं हम हो सकते
भले राह वीरानी लिख

नाम नैनसुख पर अंधे
ये 'आनंद' का मानी लिख

- आनंद


मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

काला धन


अद्भुत जन गण मन है साहब
पंक्त्तिबद्ध जीवन है साहब

प्यार मुहब्बत, साथ, भरोसा
ये सब सच्चा धन है साहब

जिसने धन को सबकुछ माना
वो एकदम निर्धन है  साहब

औरों का दुःख जिसको छूता
वो मन नील गगन है साहब

बाहर उजली उजली बातें
अंदर भरा व्यसन है साहब

कुर्सी को तुम देश कह रहे
जनता बड़ी मगन है साहब

उम्मीदों  की फ़सल काटना
अपना अपना फ़न है साहब

खोटा है 'आनंद' जगत में
ये भी काला धन है साहब

- आनंद