मंगलवार, 11 जून 2013

यह कविता नहीं है ...

भिनसहरे पहर  
कौवा बोले जब जरा ठंढी होती है 
तपती हुई यह धरती.... और 
जलता हुआ दिल,  
मौसम कैसा भी हो उस समय 
थोड़ी बयार चलने ही लगती है 
फ़ज्र की अज़ान  से जरा पहले 
किसी ने आहिस्ता से पुकारा 
कितना सोते हो...
लगा ... दुनिया खुशबू से भर गयी है 
रात तो नज़्म की आँखें भी नम थी ... फिर इतनी अलसुबह ?
आँख खोलना चाहा
पर उसने रख दिया आँखों पर हथेली 
अरे ये क्या कर रहे हो .... अब नहीं देख पाओगे मुझे 
बस एक बार ...मैंने कहा,
उसने भी कहा हाँ बस एक बार ... पर अभी नही 
पिंजरे में लगी खिडकियों की एक सीमा है 
और मेरे जहान की ख़ूबसूरती असीम,
ये ख़ूबसूरती देखने के लिए इस पिंजरे से बाहर आना होगा... 
वह चली गयी 
मंदिर में भजन बजने लगे थे 
हथेली पर ताज़ा मेंहदी की खुशबू थी 
इसी से मैंने ये अंदाज़ा लगाया ...कि
उसकी दुनिया भी मेरी जैसी ही है 
हो न हो 
वहां भी लोग ख्वाब देखते हों
और कर बैठते हो प्रेम...

सुनो 
मैं पिंजरे से निकलूंगा 
तब तुम तो किसी पिंजरे में नहीं मिलोगी ?  

-आनंद 


  

सोमवार, 10 जून 2013

जैसे हो

तुम्हें नहीं ढूंढता कहीं भी
तुम तो हो ही
खुद को यदा कदा ढूँढना पड़ता है कि तुम्हारे इस होने का
असीम सुख जी रहा हूँ या .....
कहीं और पड़ा हूँ जिंदगी को कोसता हुआ

कभी बेखयाली में अगर मेरा नाम 
आ जाये जुबाँ  पर
तो जबरन रोक लेना अपनी मुस्कराहट 
झुंझलाहट आये तो आने देना
जरा ठहरकर छोड़ना थोड़ी सी लम्बी सांस
और झटक देना सर को बहुत हलके से

मैं फिर से जी उठूँगा

और अगर मारना ही हो ...
तो कुछ नहीं करना
जैसे हो वैसे ही ठीक है ।

-आनंद 

मंगलवार, 4 जून 2013

मैंने हर अपना बेगाना देख लिया

मैंने हर अपना  बेगाना देख लिया
देखा भाई, खूब  जमाना देख लिया

सच्चाई की सुन्दर गलियाँ भी देखीं
झूठों का भी ठौर ठिकाना देख लिया

महलों वाले भी दिल के मुफ़लिस देखे
कुटियों में भी राज घराना देख लिया

कुछ ने बाज़ी देखी, कुछ ने चाल चली
मैंने पत्ते फेंटा जाना देख लिया

इंच इंच तुमने मुझको नापा जिससे
आखिर मैंने वो पैमाना देख लिया

- आनंद 

रविवार, 2 जून 2013

आज से हर ज़ख्म दुनिया की नज़र हो जाएगा

आज से हर ज़ख्म दुनिया की नज़र हो जाएगा
कारवाँ अपना, ग़ज़ल का हमसफ़र हो जायेगा

ठोकरों पर ठोकरें, फिर ज़ख्म उस पर बेरुख़ी
क्या ख़बर थी एक दिन ऐसा असर हो जायेगा

मिल गए हैं पंख, मेरी पीर को  परवाज़ को
देखना अब आसमाँ भी मुख़्तसर हो जायेगा

पत्थरों का नाम लेंगे लोग तेरे नाम पर
आशना तुझसे ज़माना इस क़दर हो जाएगा

छोड़कर खेती किसानी नात-रिश्ते, आ गए
और क्या होगा शहर में एक घर हो जायेगा

क्या बताऊँ, क्यों ग़ज़लगोई हुई, सोचा न था
आँख का पानी दिखा देना,  हुनर हो जायेगा

जाते जाते एक टुकड़ा मुस्कराहट आपको
ख़्वाब है 'आनंद' का पूरा अगर हो जायेगा

- आनंद







सोमवार, 27 मई 2013

इमरोज़ एक मुकम्मल नज़्म



आज उन्हें उनके नाम से बुलाऊंगा हमेशा तो कहता हूँ "मोहब्बत का ख़ुदा"
हालाँकि आज भी उन्होंने वही बात पूछी कि
अब हीर क्यों नहीं पैदा होती
बेटियां तो आज भी हैं
माँ बाप भी आज भी हैं .....
आज इमरोज़ के साथ बिलकुल अनौपचारिक माहौल में एक शाम बितायी ... हम दोनों के बीच में कोई नहीं था सिवाय अमृता के ...इमरोज़ की पेन्टिंग्स उनके पाक विचारों का नमूना हैं और इमरोज़ की नज़्में बहुत सधी हुई और लाज़बाब ... बहुत देर तक सुनाते रहे बतियाते रहे फिर घर से निकल कर टहलने चल पड़े  फिर वापस आकर बातें, लगा कि जैसे वो एक एक पन्ना पलट रहे हैं और मैं एक एक सफहा पी रहा हूँ, बुलाने गया था दो तारीख के लिए उनको...तो कहने लगे अमृता ने कभी किसी किताब का लोकार्पण नहीं करवाया ..कभी किसी से कोई भूमिका नहीं लिखवाई...मुझे कहाँ ले चलोगे मैं कुछ बोल तो पाता नहीं, मैंने कहा आपका रहना ही सबकुछ है मेरे लिए ....  असीम सुकून लेकर लौटा हूँ
बार बार एक ही बात दिमाग में कौंध रही है
"अपने को अपनी पसन्द का बना लो सारी दुनिया अपनी पसंद की हो जाएगी "
 ग़ज़ल की बात चलने पर एक नज़्म का हिस्सा उन्होंने और सुनाया;
"तेरे जाने पर
जिंदगी ग़ज़ल हो जाती है
और तेरे आने पर
ग़ज़ल जिंदगी"
.......................
एक किताब देने लगे पहले तो पंजाबी की लाये फिर अपने आप ही .... अरे मगर आप को तो  पंजाबी आती नहीं होगी ...फिर हिंदी की लाये .... मैंने कहा कुछ लिखदो इसपर तो कहने लगे हिंदी तो लिख नहीं पाता फिर कुछ सोचा और कहा इंग्लिश में लिखता हूँ ..... और लिख दिया ;
"Every thing you love is yours" कहने लगे यह वाक्य बचपन से मेरे साथ है !
मैं क्या कहता वो भी तो न जाने कब से मेरे साथ हैं !
इमरोज़ को खाना खिलाती अमृता