शुक्रवार, 11 मई 2012
रविवार, 29 अप्रैल 2012
जब भी किसी के प्यार में होती हैं लड़कियां
मुस्किल से, जरा देर को सोती हैं लड़कियां
जब भी किसी के प्यार में होती हैं लड़कियां
'पापा' को कोई रंज न हो, बस ये सोंचकर,
अपनी हयात ग़म में डुबोती हैं लड़कियां
फूलों की तरह खुशबू बिखेरें सुबह से शाम
किस्मत भी गुलों सी लिए होती हैं लड़कियां
'उनमें'...किसी मशीन में, इतना ही फर्क है
सूने में बड़े जोर से, रोती हैं लड़कियां
टुकड़ों में बांटकर कभी, खुद को निहारिये
फिर कहिये, किसी की नही होती हैं लड़कियां
फूलों का हार हो, कभी बाँहों का हार हो
धागे की जगह खुद को पिरोती हैं लड़कियां
'आनंद' अगर अपने तजुर्बे कि कहे तो
फौलाद हैं, फौलाद ही होती हैं लड़कियां
-आनंद द्विवेदी
२९ अप्रेल २०१२
मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
झूठे हम ...
तुमने कहा....
प्रेम ही ईश्वर है
मैंने मान लिया
तुमने कहा....
मैं बुद्धू हूँ
पागल हूँ
दीवाना हूँ
मैंने मान लिया
तुमने कहा.....
मैं जब भी तुम्हारे पास होती हूँ
अपने सहज रूप में होती हूँ
अपने स्व में होती हूँ
मैंने मान लिया
मैंने मान लिया
तुम तो हर बात साक्षी भाव से देखते थे न
तुमने कहा .....
हमें विधाता ने मिलाया है
ये मिलन अनायास नहीं है
बल्कि ये रूहों का मिलन है
मैंने मान लिया
तुमने कहा .....
तुम न मिलते तो
अपूर्ण ही रहती मैं
मैंने मान लिया |
फिर एक दिन ...
तुमने कहा
हमारा साथ इतने ही दिन का था
मैंने मान लिया
तुमने कहा
तुम्हारे जीवन में मेरी भूमिका पूरी होती है
मैंने मान लिया
फिर तुमने कहा
हमारा मिलना महज़ इत्तेफ़ाक था
मैं चुप रहा
मैं चुप रहा
और सोंचता रहा कि
परिवर्तन तो जीवंतता की निशानी है
इससे यही तो साबित होता है कि तुम जीवंत हो
मगर फिर तुमने कहा ....
सोंच लेना हम राह चलते हुए
ऐसे ही 'टकरा' गए थे
उफ्फ़
कैसे कह पाए तुम ये
पहली और अंतिम बात
अंतिम ....जो तुमने कही थी
और पहली ...जिसे मैं मान नहीं पाया |
और मैं ...
मैंने तो हर बार एक ही बात कही
कि मैं.... तुम्हारे बगैर जी न पाऊंगा |
देखो तो ....
कैसे जीवन ने
हम दोनों को ही
झूठा साबित कर दिया ||
आनंद
२४ अप्रेल २०१२
एक गीत शिद्दत से याद आ रहा है
http://www.youtube.com/watch?v=u0bfDPsWxQY&feature=fvst
शनिवार, 21 अप्रैल 2012
कौन याद रक्खे उम्र भर...
कुछ और देखने दे, जरा जिंदगी ठहर,
मेरा रकीब कौन है और कौन रहगुजर |
ईमान ही साथी है तो उसको भी देख लूं ,
कल तक तो 'यही दोस्त' था मेरा इधर उधर |
जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र |
दो घूँट हलक में गये, हर दर्द उड़न छू,
बेशक बुरी शराब हो, पर है ये कारगर |
मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |
खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
-आनंद
२१ अप्रेल २०१२
२१ अप्रेल २०१२
सोमवार, 9 अप्रैल 2012
ऐसे ही नहीं आग लगाते रहे हैं लोग
ऐसे ही नहीं आग लगाते रहे हैं लोग,
जलने का सलीका भी सिखाते रहे हैं लोग
थोड़ी बहुत तो मेरी फिकर भी रही उन्हें
अपने तमाम फ़र्ज़ निभाते रहे हैं लोग
क्या कीजिये जो कोई दुआ काम न करे,
मेरे लिए तो हाथ उठाते रहे हैं लोग
मैं चल न पडूँ उनकी तरफ, डर था उन्हें भी,
मैं चल न पडूँ उनकी तरफ, डर था उन्हें भी,
क़दमों के निशाँ तक को, मिटाते रहे हैं लोग
चलना फ़ना की राह तो फिर ये हिसाब क्या
किस किस तरह से मुझको सताते रहे हैं लोग
किस किस तरह से मुझको सताते रहे हैं लोग
'आनंद' कहाँ खो गया जिससे भी पूछिए
दिल्ली कि तरफ हाथ उठाते रहे हैं लोग
आनंद
आनंद
९ अप्रेल २०१२.
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