कुछ और देखने दे, जरा जिंदगी ठहर,
मेरा रकीब कौन है और कौन रहगुजर |
ईमान ही साथी है तो उसको भी देख लूं ,
कल तक तो 'यही दोस्त' था मेरा इधर उधर |
जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र |
दो घूँट हलक में गये, हर दर्द उड़न छू,
बेशक बुरी शराब हो, पर है ये कारगर |
मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |
खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
-आनंद
२१ अप्रेल २०१२
२१ अप्रेल २०१२
सुंदर है ग़ज़ल, 'गांव' की तरह।
जवाब देंहटाएंजो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
जवाब देंहटाएंमुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र |
बहुत खूबसूरत गजल .... आज कल ब्लौग्स पर भ्रमण नहीं के बराबर है आपका
बहुत खूबसूरती से भावों को संजोया है।
जवाब देंहटाएंवाह..............
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सौंधी सी गज़ल................
अनु
आज हमारे फासलों को देख कर लगता है कि
जवाब देंहटाएंवो पलों का जुनून था ,जो हम कुछ देर को बहके थे||
वाह...बेहद उम्दा गजल !
जवाब देंहटाएंमैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
जवाब देंहटाएंअब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |
खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
वाह ...बहुत खूब।
"मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र"
जवाब देंहटाएंसहजता से व्यक्त होता अकाट्य सत्य! पढने के बाद मन में छप सी जाती है ग़ज़ल!
Sundar Rachana.
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