शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कौन याद रक्खे उम्र भर...




कुछ और देखने दे,  जरा जिंदगी ठहर, 
मेरा रकीब कौन है और कौन रहगुजर |

ईमान ही साथी है  तो उसको भी  देख लूं ,
कल तक तो 'यही दोस्त' था मेरा इधर उधर |

जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर  सफ़र |

दो घूँट हलक में गये,  हर दर्द उड़न छू,
बेशक बुरी शराब हो, पर है ये कारगर |

मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |

खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
'आनंद' !  तुझे कौन याद  रक्खे  उम्र भर  |

-आनंद
२१ अप्रेल २०१२ 

9 टिप्‍पणियां:

  1. जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
    मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र |

    बहुत खूबसूरत गजल .... आज कल ब्लौग्स पर भ्रमण नहीं के बराबर है आपका

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  2. बहुत खूबसूरती से भावों को संजोया है।

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  3. वाह..............

    बहुत बढ़िया सौंधी सी गज़ल................

    अनु

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  4. आज हमारे फासलों को देख कर लगता है कि
    वो पलों का जुनून था ,जो हम कुछ देर को बहके थे||

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  5. मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
    अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |

    खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
    'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
    वाह ...बहुत खूब।

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  6. "मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र"

    सहजता से व्यक्त होता अकाट्य सत्य! पढने के बाद मन में छप सी जाती है ग़ज़ल!

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