रविवार, 15 जनवरी 2017

ग़मों की सरपरस्ती में...

गज़ब का लुत्फ़ होता है दिल-ए-पुर-खूँ की मस्ती में
ज़िगर पर चोट खाये बिन मुकम्मल कौन हस्ती में

न जाने किस भरोसे पर मुझे माँझी कहा उसने
कई सूराख़ पहले से हैं इस जीवन की कश्ती में

हमारी देह का रावन तुम्हारी नेह की सीता
'लिविंग' में साथ रहते हैं नई दिल्ली की बस्ती में

तुम्हारी साझेदारी का कोई सामान क्यों बेचूँ
पड़ी रहने दो सब ग़ज़लें ये ग़म खुशियाँ गिरस्ती में

हमारे शहर् मत आना यहाँ सब काम उल्टे हैं
यहाँ 'आनंद' जिंदा है ग़मों की सरपरस्ती में

- आनंद

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

राम कहानी

मेरी राम कहानी लिख
कुछ आँखों का पानी लिख

ख्वाब हो गया अपनापन
तनहा उम्र नसानी लिख

तेरे बिन भी जिन्दा हैं
इतनी सी बेइमानी लिख

मगर जिंदगी चुप सी है
बिना खिले कुम्हलानी लिख

उनकी संगदिली गर लिख
मेरी भी मनमानी लिख

कुछ दुनिया के किस्से लिख
कुछ मेरी नादानी लिख

मेरी अब तक की बातें
सब नाकाम कहानी लिख

सरपट दौड़ हुआ जीवन
घाट घाट का पानी लिख

भीड़ नहीं हम हो सकते
भले राह वीरानी लिख

नाम नैनसुख पर अंधे
ये 'आनंद' का मानी लिख

- आनंद


मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

काला धन


अद्भुत जन गण मन है साहब
पंक्त्तिबद्ध जीवन है साहब

प्यार मुहब्बत, साथ, भरोसा
ये सब सच्चा धन है साहब

जिसने धन को सबकुछ माना
वो एकदम निर्धन है  साहब

औरों का दुःख जिसको छूता
वो मन नील गगन है साहब

बाहर उजली उजली बातें
अंदर भरा व्यसन है साहब

कुर्सी को तुम देश कह रहे
जनता बड़ी मगन है साहब

उम्मीदों  की फ़सल काटना
अपना अपना फ़न है साहब

खोटा है 'आनंद' जगत में
ये भी काला धन है साहब

- आनंद 

रविवार, 25 सितंबर 2016

लौटती राहों का स्वप्न

मेरी वजह से
कितने बुरे होते जा रहे हो तुम
सब ख़त्म कर दोगे न ?
मिटा दोगे अपने पाँव के निशाँ
शायद राह भी ...

मगर मेरी आँखों से निकलती है एक नदी
उसी से आऊंगा मैं तुम्हारे पास
तैरना नहीं जानता 'तुम्हारी तरह'
घाट की थाह भी नहीं
डूबना नियति है
केवल समय नहीं है नियत

पर अपने हजारों डरो के बावजूद
मैं आऊंगा एक दिन
और देखूँगा अपनी आँखों से
कैसे अपने बन जाते हैं पराये 
देखूँगा तुम्हें
जैसे मोर देखता है घन को
चकोर देखता है चन्दा को
और अगर तुमने जुल्म की इंतेहाँ ही कर दी
तो फिर...
विअसे ही देख लूँगा
जैसे चोर देखता है किसी राजकोष को
पर मैं आऊंगा जरूर
क्योंकि खुछ घटनाओं का घाट जाना ही  
अच्छा होता है मृत्यु से पूर्व,

कमरे के बिस्तर पर मरने से 
लाख गुना अच्छा है 
राहों पर चलते हुए मरना
और अगर वो राहें तुम्हारी हों
तो फिर क्या कहने ...!

- आनंद


शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

ग़रीब

ग़रीब
वह होता है
जो ... देता है
रोजगार
योजना बनाने वालों को,

चलाता है
अफ़सर से लेकर चपरासी तक
तनख्वाह से लेकर कमीशन तक
एक पूरी व्यवस्था ,

उद्योगपतियों के चेहरों को देता है मुस्कान
नेताओं को देता है
उनका हिस्सा
संसद को देता है
एक वजह
राजनीति को ... नारे
और
विदेशी बैंकों को धन

ग़रीब
कितना जरूरी है
देश की मुख्यधारा के लिए !

-आनंद