मंगलवार, 14 जुलाई 2015

दुनिया मन का खेल है ... दोहे !

दुनिया मन का खेल है, मनवा रहा खेलाय
मन पाये बौराय जग, मन मारे  चिल्लाय

तूने देखा जगत को केवल स्याह सफ़ेद
इन दोनों के बीच में, छुपा प्रेम का भेद

जीवन तेरी राह में, थोथा दिया गँवाय
हरदम तेरे सूप ने मुझको दिया उड़ाय

चोट्टी यादें रोक लें कुछ ना कुछ अहसास
संबंधों का  खात्मा,  है  कोरी  बकवास

होना न होना तेरा, फ़र्क़ रहा क्या खास
जैसी दुपहर जेठ की वैसा ही मधुमास

आते जाते राह में राही मिलें अनेक
सबको दुआ-सलाम कर राह आपनी देख

- आनंद  

रविवार, 14 जून 2015

विक्रम बैताल

एक न एक दिन खाली करनी ही होंगी 
वो सारी दीवारें
जिनमें टंगे टंगे धूल खा रहे हैं
कल्पनाओं के अगनित चित्र
और ढेर सारी यादें, 
मगर 
घर में नहीं बची है
इन्हें रखने के लिए एक भी सन्दूक
जैसे यादों में
नहीं बची है अब 
एक भी उम्मीद,

बैताल सी यादें
अक्सर कुछ न कुछ पूछती हैं मुझसे
मैं अक्सर पकड़ा देता हूँ उनको भी वही जवाब
जिनसे हमेशा बहलाया करता हूँ खुद को
मसलन
तुम मेरे होते तो मेरे होते
वर्तमान ही सत्य है बाकी सब भ्रम है
जीवन एक अभिनय है
अभिनय में न कोई मिलता है... न बिछुड़ता
आदि आदि ,

यादें फिर भी नहीं जाती
किसी वृक्ष पर
यादें फिर भी नहीं करती
मेरे सर के टुकड़े टुकड़े,

मैं और यादें
आज के विक्रम बैताल हैं
एक दूसरे के बिना अस्तित्वहीन
एक दूसरे के साथ को अभिशप्त

- आनंद


शनिवार, 6 जून 2015

होना न होना

जब जब मैं यह देखता हूँ
जीवन में क्या क्या है मेरे पास
तुम्हारा नहीं होना
हमेशा साथ होता है

तुम्हारी इस तदबीर पर
बेसाख्ता मुस्कराता हूँ ,
मान लेता हूँ
कि तुम हो बाबा... आज भी
मुझमें सबसे ज्यादा !


- आनंद

शनिवार, 16 मई 2015

दामने-दर्द को चोटों से बचाते चलिए

दामन-ए-दर्द को चोटों से बचाते चलिए
और लग जाएँ, तो सीने से लगाते चलिए

वो अगर आपका होता तो आपका होता
गैर तो गैर हैं,  नुकसान बचाते चलिए

भूलना ख़ास नियामत ख़ुदा ने बक्सी है
ज़िंदगी  भूल-भुलैय्या है भुलाते चलिए

आजकल देवता होते नहीं गुनाहों के
हर गुनहगार को सूली पे चढ़ाते चलिए

ज़िंदगी वक़्त की मुख़बिर है, भली लाख बने
इसकी नज़रों से कई ख़्वाब छुपाते चलिए

पाप और पुण्य के झगड़े में सिफ़र हासिल है
अपने आनंद को पचड़े से बचाते चलिए

- आनंद





बुधवार, 29 अप्रैल 2015

मेरा साक़ी कहाँ

मेरा साक़ी कहाँ, शराब कहाँ
मेरे हिस्से का माहताब कहाँ

जो मिरी कब्र तक पहुँचने थे
हाथ वो कौन हैं, ग़ुलाब कहाँ

कोई उम्मीद क्यों नहीं ठहरी
भाग पलकों से गए ख़्वाब कहाँ

ज़िंदगी प्रश्न-पत्र  है गरचे
मैं कहाँ हूँ, मेरे जवाब कहाँ

सबपे अपनी लड़ाइयाँ भारी
ऐसे मंज़र में इंकलाब कहाँ

ये सभी शहसवार गिरने हैं
इनके पैरों तले रक़ाब कहाँ

वो मुझे देख कर न देखेगा
उसके जैसा मैं कामयाब कहाँ

इन दिनों गलतियाँ नहीं करता
अब वो 'आनंद' लाज़वाब कहाँ

- आनंद