गुरुवार, 12 मार्च 2015

छानी-छप्पर फूस- मड़ैया बाकी हैं

छानी-छप्पर फूस- मड़ैया बाकी हैं
कहीं कहीं पर ताल तलैया बाकी हैं

भाई, मेरे गाँव गली में अब भी कुछ
बिरहा, कजरी, फाग गवैया बाकी हैं

कुछ तो बड़े मतलबी चतुर सयाने हैं
उनमें भी कुछ नेह निभैया बाकी हैं

टूट रहे विश्वासों की इस धरती पर
मरे जिए कुछ काँध देवैया बाकी हैं

कभी कभी सर पर छत जैसे लगते हैं
काकी-काका, भौजी- भैया बाकी हैं

- आनंद









शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला


कई मित्र अक्सर ग़ज़ल संग्रह 'फ़ुर्सत में आज' के बारे में पूछ बैठते हैं ... मुझे भी इसी तरह गाहे-बगाहे अपनी किताब की याद आ जाती है, बहरहाल उन्हीं मित्रों के लिए सूचना कि पुस्तक 'दुनिया किताब मेले में "बोधि प्रकाशन" के स्टाल पर उपलब्ध है !

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

जरिबो पावक मांहि

प्रेमी कहता है
एक आस टूटी
ज्ञानी कहता है
एक बंधन टूटा
ईश्वर खड़ा हो गया है आकर ठीक उस जगह
कल तक तुम जहाँ खड़ी थी
चीड़ के पेड़ की तरह,

प्रेमी कहता है
खो गया सब कुछ
ईश्वर केवल रिक्त स्थान की पूर्ति का भ्रम है
ज्ञानी कहता है
मिल गया है वह सबकुछ
जिसकी पूर्ति भ्रमों से रिक्त होकर ही होती है

मेरे भीतर से एक नन्हा शिशु निकलकर
पकड़ लेता है ऊँगली
तेरे उसी प्रेमी की
जिसने हमेशा तुझे ही चुना
ईश्वर के मुकाबले

मैं कोई बच्चा तो हूँ नहीं
इसीलिये बढ़ता हूँ
ईश्वर की तरफ
आखिर मुझे और भी बहुत कुछ देखना है
जीवन से लेकर मृत्यु तक

ईश्वर बहुत अच्छा व्यवस्थापक है
व्यवस्था में ही सबका हित है
जान है तो जहान है
फिर भले ही ये जान और ये जहान
दोनों दो कौड़ी के हों

कमजोर लोग
नहीं कर सकते ...कभी
प्रेम
प्रेम आक्सीजन की जगह भरता है साँसों में
साहस
और कार्बन डाई आक्साइड की जगह
बाहर छोड़ता है
विद्रोह !

अंततः
ज्ञानी सुख को प्राप्त होता है
और प्रेमी
दाह  को !

- आनंद 

रविवार, 25 जनवरी 2015

इतना भी नहीं टूट गया हूँ ...

इतना भी नहीं टूट गया हूँ, यक़ीन रख
जब दे रहा है दर्द तो उसमें कमी न रख

मैं जिस्म के कर्ज़े उतारता चलूँ, ठहर
बेसब्र है तो रूह की गिरवी ज़मीन रख

कर दे मेरे नसीब में गुमनाम रास्ते
अपने सफ़र के वास्ते, राहें हसीन रख

अब वक़्त जा रहा है  दुआएँ क़ुबूल कर
कुछ देर मुल्तवी तू मेरी छानबीन रख

'आनंद' कहीं राह में ठोकर भी खायेगा
जब भी गिरेगा उठके चलेगा यक़ीन रख

- आनंद


बुधवार, 14 जनवरी 2015

इस दुनिया को रहने लायक कर मौला

काँप रहे हैं बच्चे थर थर थर मौला
इस दुनिया को रहने लायक कर मौला

जो ताक़त के पलड़े में कुछ हलके हैं
उनको भी करने दे गुज़र-बसर मौला

पहले मज़हब में बाँटा इंसानों को
देख बैठकर अब खूनी मंज़र मौला

आधी आबादी दुश्मन है आधी की
थोड़ा इन मर्दों को काबू कर मौला

ना तुझसे डरते न तेरी दुनिया से
तू खुद ही अपने बंदों से डर मौला

ताकत की सत्ता का नियम बना जबसे
उस दिन को मनहूस मुकर्रर कर मौला

ऐसा ही इंसान रचा था क्या तूने  ?
ऊपर मीठा, अंदर भरा ज़हर मौला

जब जीवन ठगविद्या हो 'आनंद' नहीं
मुझको फिर छोटे बच्चे सा कर मौला

- आनंद