काँप रहे हैं बच्चे थर थर थर मौला
इस दुनिया को रहने लायक कर मौला
जो ताक़त के पलड़े में कुछ हलके हैं
उनको भी करने दे गुज़र-बसर मौला
पहले मज़हब में बाँटा इंसानों को
देख बैठकर अब खूनी मंज़र मौला
आधी आबादी दुश्मन है आधी की
थोड़ा इन मर्दों को काबू कर मौला
ना तुझसे डरते न तेरी दुनिया से
तू खुद ही अपने बंदों से डर मौला
ताकत की सत्ता का नियम बना जबसे
उस दिन को मनहूस मुकर्रर कर मौला
ऐसा ही इंसान रचा था क्या तूने ?
ऊपर मीठा, अंदर भरा ज़हर मौला
जब जीवन ठगविद्या हो 'आनंद' नहीं
मुझको फिर छोटे बच्चे सा कर मौला
- आनंद
इस दुनिया को रहने लायक कर मौला
जो ताक़त के पलड़े में कुछ हलके हैं
उनको भी करने दे गुज़र-बसर मौला
पहले मज़हब में बाँटा इंसानों को
देख बैठकर अब खूनी मंज़र मौला
आधी आबादी दुश्मन है आधी की
थोड़ा इन मर्दों को काबू कर मौला
ना तुझसे डरते न तेरी दुनिया से
तू खुद ही अपने बंदों से डर मौला
ताकत की सत्ता का नियम बना जबसे
उस दिन को मनहूस मुकर्रर कर मौला
ऐसा ही इंसान रचा था क्या तूने ?
ऊपर मीठा, अंदर भरा ज़हर मौला
जब जीवन ठगविद्या हो 'आनंद' नहीं
मुझको फिर छोटे बच्चे सा कर मौला
- आनंद
सुन्दर एवं सारगर्भित रचना, बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंजीवन की और संघर्षों की वास्तविकता को उजागर करती अदभुत गजल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर --
क्षमा चाहता हूँ कि देर से आता हूँ
सादर
मेरे ब्लॉग में भी पधारें
अम्मा का निजि प्रेम -------
aagrah hai mere blog main bhi sammlit hon
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर...सुन्दर ग़ज़ल...
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