बुधवार, 15 जनवरी 2014

नहीं कह सकता कुछ भी

नहीं लिख सकता
अब अपनी उदासी
ना ही कह सकता हूँ  किसी से
खुलकर यह बात
कि अब न तुम हो
न वो सारी परेशानियाँ
जिनसे भरी रहती थी हमेशा
शर्ट की उपरी जेब
जरा सा झुकते ही टपक जाया करती थी
कोई न कोई शिकायत

लाख मन हो पर नहीं गा सकता
लड़कपन का कोई गीत
हो नहीं सकता वहाँ कभी भी
जहाँ जहाँ होना चाहता हूँ
पूछ नहीं सकता किसी से भी
दिल का राज़
दिखा नहीं सकता किसी को
अपना खोखलापन

आजकल इतना अकेला हूँ कि
नहीं महसूस कर सकता किसी को भी अपने आसपास
और इतना घिरा हूँ अपने आसपास से कि
तलाश रहा हूँ थोड़ा सा एकान्त
ताकि लिख सकूँ फिर से
एक प्रेम कविता
जिसे लिखते हुए रो पडूँ मैं
और पढ़ते हुए
मुस्करा पड़ो तुम !

- आनंद




मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

इंतजार

मैं विदा नहीं करता किसी को भी
चले जाते हैं सब के सब
अपने आप ही,
अपने स्वयं के जाने तक
मुझे देखना है बस सबका
आना और आकर चला जाना

इस उम्मीद में हूँ कि
शायद कोई ठहरे
पूछे
कि कैसे हो,
कोई कहे
कि आओ साथ चलें,  
मगर एक इंतजार के सिवा
कोई ठिठकता भी नहीं अब पास

इंतजार कुछ कहता नहीं
मैं भी कुछ पूछता नहीं,
हम दोनों हैं
मौन,
एक दूसरे से ऊबे हुए
एक दूसरे के साथ को अभिशप्त !

 - आनंद

रविवार, 29 दिसंबर 2013

कैसे जानूँ तुझे



तुम हो
क्योंकि मेरा वज़ूद है अब तक
और कैसे जानूँ  तुमको 
सिवाय जीवन की तरह अनुभव करने के,
तुम्हें और खुश करने के हज़ार जतन ढूँढता है मन 
जब होते हो तुम खुश,
ढूँढता है मनाने के लाख बहाने
जब होते हो नाखुश, 
डूबता है तुम्हें उदास देखकर 
नाचता है तुम्हारी अल्हड़ता से 
गर्वीला हो उठता है…पास पाकर तुम्हें, 
एक मौन सा पसर जाता है जीवन पर 
तुम्हें पाकर दूर 

तुम इसे प्रेम मानो या न मानो 
मैं इसे जीवन मानूँ या न मानूँ 
सच यही है कि  
मेरे तुम्हारे इन सम्बन्धों में 
तुम न होकर भी हर पल व्याप्त हो 
किसी अनचीन्हें ईश्वर की तरह 
मैं हर पल होकर भी कहीं नहीं हूँ
नश्वर संसार की तरह

तुम सत्य हो
मैं कथ्य
तुम चेतन हो
मैं जड़ 
और हमारे संयोग का नाम है
'जीवन' !


- आनंद 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

अपना ऐसा ही अफ़साना है भैया ...

अपना ऐसा ही अफ़साना है भैया
पपड़ी ताजी जख़्म पुराना है भैया 

सब के होंठों पर है बात मोहब्बत की
अन्दर झाँको तो वीराना है भैया 

उससे अक्सर अपनों के ही क़त्ल हुए
मेरा जिस शै से याराना है भैया 

कौन किसी की गलियों में डेरा डाले
ठहरे, जब तक  आबो दाना है भैया 

बरसाती नदियों के जिम्मे खेती है
उम्मीदों की फ़सल उगाना है भैया 

टीवी वाले बाबा अक्सर कहते हैं
खाली हाथ जहाँ  से जाना है भैया 

बातें जाने की, उद्यम सब टिकने के
जीवन है या दारूखाना है भैया 

मनमंदिर की मूरत में 'आनंद' नहीं  
बाहर सबको ज्ञान बताना है भैया। 

© आनंद

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

सपना

छोड़ दूँ
एक ख़ुशबू
तुम्हारे आसपास
एक भरोसा
तुम्हारे भीतर
एक साथ
तुम्हारे अहसासों में
एक गुनगुनाहट
तुम्हारे जीवन में
एक सपना
तुम्हारी आँख में
एक टीस
तुम्हारे एकांत में

फिर चला जाऊँगा
जितनी दूर तुम कहोगी
उतनी दूर
तुम से
जीवन से ...
तब तक देखने दो मेरी
अंधेरे की अभ्यस्त आँखों को
रोशनी का एक सपना
एक सपना
किसी के साथ का !

- आनंद