शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

पाने की इच्छा

सारा दिन
बार बार
स्मृतियों को
उलट पुलट कर देखता हूँ
हर बार पाता हूँ कि
और और उलझ गयी है मेरी शिनाख्त
रात भये
मंझे से कटी पतंग की तरह गिरता हूँ
बिस्तर पर
जहाँ नींद उलझा देती है
पुरानी चरखी से उतरा हुआ सारा धागा

तुम आगे बढ़ गये हो
सारा कुछ उलझा हुआ छोड़कर
अपनी धवल राहों में
मैं तटस्थ हो गया हूँ समय से
और ढूँढ रहा हूँ,
तुमको ..न...न
बस धागे का एक सिरा
इस बार
बिना टूटे
ये शायद सुलझेगा नहीं !

बड़ी सकारात्मकता से भरी है यह दुनिया
पहाड़ों पर कचरा फेंकती है
और नदियों में मैला
हवा में जहर घोलती है
और दिलों में उदासी
अब तो किसी को खुश देखो तो भी डर लगता है
न जाने इस मुस्कान की कीमत
कितने आँसुओं ने चुकाया हो
आख़िर हर क़दम पर यही तो सिखाया जाता है हमें
प्रेम सिर्फ़ मिटने का नाम है
पाने की इच्छा 'पाप' है

हम ठोकर मारते हैं
इस
अच्छा होने की चाहत को
और ठाठ से हैं
अपने बे शिनाख्त वजूद में ही
तुम्हें पाने की इच्छा (बेशक पाप) के साथ !

-आनंद 

बुधवार, 25 सितंबर 2013

आत्महत्या


सल्फ़ास खा लेना
या कलाई की नशें काट लेना
नहीं है आत्महत्या
वो तो है ...
केवल गलत तरीके से किया गया
एक गैर जरूरी काम,
आत्महत्या तो  है
प्रेम की ऐसी राह चल पड़ना
जिसकी शुरुआत में ही
'एकतरफा मार्ग' लिखा हो

इसे ही बार बार
आदर्श कहा जाता है
तमाशबीनों की तरफ से
इस महिमामंडन में  कभी कभी
चुपके चुपके
पिस जाती है एक जिंदगी !

- आनंद

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मेरी सिगरेट




पचीस साल से थी
एक बुराई की तरह...
साथ ...मेरी सिगरेट !
अच्छाइयां इतना कहाँ रूकती हैं
छोड़ दिया एक झटके में
और महसूस किया
कि कैसे तुमने छोड़ दिया था ख्वाबों के ठीक बीच में ...
अचानक बस एक सन्देश से
बिना कुछ कहने का अवसर दिए
कई बार किया होगा मन बस एक बार बात करने का
जैसे मेरा करता है कभी कभार एक कश लेने का
मगर कुछ भय और कुछ अहम्
भय कि फिर से लत न पड़ जाए
अहम् कि  मैंने त्याग दिया
और इस तरह किसी एक पल में
अचानक लिया गया निर्णय
हो जाता है स्थायी ...
 
असल में
छोड़ना  है ही आकस्मिक क्रिया
धीरे धीरे कुछ नहीं छूटता
धीरे धीरे तो कसता है
हर फंदा
और फिर एक दिन अचानक
छूट जाता है वर्षों का साथ
जैसे कि मेरी सिगरेट,

कुछ जिंदगियाँ भी तो सिगरेट जैसी होती हैं
हमेशा सुलगकर सुकून देती
और कभी भी अचानक छोड़ दिए जाने को तैयार !

 - आनंद 

रविवार, 22 सितंबर 2013

दर्द को मेहमानखाने से हटाकर रख दिया

दर्द को मेहमानखाने से हटाकर रख दिया
फिर वहीँ हंसती हुई फ़ोटो मढ़ाकर रख दिया

रख दिया अलमारियों में बंद करके रतजगे
और टूटे ख्वाब के टुकड़े उठाकर  रख दिया

आ गया था दिल किसी मगरूर क़दमों के तले
आदतन उसने जरा खेला  मिटाकर रख दिया

कुछ तसव्वुर जिंदगी भर साथ रहने थे मगर
मैंने हर तस्वीर एल्बम में लगाकर रख दिया

जब  कभी तारीकियाँ होंगी  जला लेगा  मुझे
रोशनी थी इसलिए शायद बुझाकर रख दिया

घूम आया हर गली 'आनंद' जिसके वास्ते
जिंदगी ने वो हसीं लम्हा छुपाकर रख दिया

_ आनंद

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

आंसुओं की झील में ही

आँसुओं की झील में ही प्यास को जीते चलें
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें

जब बनेगी तब बनेगी बात मंजिल से, अभी
राह के हाथों मिले संत्रास को जीते चलें

हो गयीं हदबंदियाँ अब दोस्ती में  प्रेम में
इस नदी में बाँध के अहसास को जीते चलें

काम आएँगी यही बेचैनियाँ, एकान्त में
जब तलक है, साथ के आभास को जीते चलें

हाथ में पकड़ा रहा है वक़्त, जीने के लिए
एक झूठी आस, लेकिन आस को जीते चलें

 - आनंद