सोमवार, 18 मार्च 2013

उसने कहा...

उसने कहा
तुम पुरुष नहीं, स्त्री हो मेरी जान
गलती से  गलत आत्मा में
गलत ढाँचा लग गया है
तुम एक बहुत कमज़ोर इंसान हो
एकदम लुंज पुंज
जो परिस्थितियों से लड़ना चाहता ही नहीं,
तुम, तुम्हारे साथ जो हो रहा है उसे होने देते हो
डर-डर  के जीते हो तुम
अपने ही दायरे में .., !
नहीं तोड़ सकते तुम कोइ चक्रव्यूह,
तुम न केवल सामर्थ्य विहीन हो
वरन पात्रता होते हुए भी पात्र विहीन हो
जिसमे ... नहीं डाल सकता कोई कुछ
चाहकर भी
तुम्हारी चाल इतनी धीमी है कि
तुम उस जगह, उस वक्त पहुंचोगे ...जब
प्रेम का आखिरी कतरा उलीचा जा चुका होगा
मगर फिर भी तुम्हें
अपनी हार का अहसास नहीं होगा
मान लोगे नियति ही तुम  कुछ भी न पाने को
तुम
किसी काम के इंसान नहीं हो .....।

सच ही तो कहा उसने

तुम्हारे बिना ,
मैं
एकदम ऐसा ही हूँ
किसी काम का नहीं
बेकार .........
इच्छाविहीन !

- आनंद
    

सोमवार, 11 मार्च 2013

उम्र भर इम्तिहान मत लेना

उम्र भर इम्तिहान मत लेना
बेवजह कोई जान मत लेना

जिसको दो पल न दे सको अपने 
उसका सारा जहान मत लेना

काट दो पंख कोई बात नहीं
हाँ मगर आसमान मत लेना

होश में आ गया है वो फिर से  
उसका कोई बयान मत लेना 

जिसकी आँखों में बेहयाई हो 
उससे कोई ज़ुबान मत लेना 

सारे 'आनंद' से मिलेंगे यहाँ
इस शहर में मकान मत लेना 

-आनंद 





झूठी दुनिया

अपना कह दूँ
तो तुझको अच्छा नहीं लगता
गैर कह के बुलाऊं
तो कलेज़ा मुँह को आता है
हरजाई कह दूँ
तो खुद को अच्छा नहीं लगता
बावफ़ा और बेवफ़ा
ऐसी बातों पर खुद ही यकीन नहीं
अब ले दे कर
ज़ालिम और निर्मोही बचता है
कैसे पुकारूँ तुझे

कैसे सुनेगा तू
दुश्मन !

झूठ बोलती है सारी दुनिया
कि दिल की आवाज़
दिल तक पहुँचती है !

- आनंद 

गुरुवार, 7 मार्च 2013

सुनो स्त्रियों !

सुनो स्त्रियों !
मैं तुमको
किसी एक दिन तक नहीं समेटना चाहता
कि तुम तो हो निस्सीम
उतना... जितना स्वयं हो सकता है परमात्मा
जिसने रचा है हमको तुमको बिना भेद किये
बिना कोई विशेष दिन निर्धारित किये
तुम न कोई उपलब्धि हो
न कोई त्रासदी,
तुम बस तुम हो...
जैसे मैं हूँ,
जैसे है दिन-रात, नदियाँ, आकाश, पहाड़ और पेड़
जैसे है यह दुनिया और इसमें वो बहुत सारी चीज़े
जिनके बारे मे मैं जरा भी नहीं जानता
मैं देखना चाहता हूँ तुम्हारे होने को
एक प्रकृति की तरह
मैं जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ को
एक साथी की तरह
बिना तुम्हें महिमामंडित किये
बिना तुम्हारी सहजता को खतरा पैदा किये।

मैं चाहता हूँ तुम देखो
इस महिमामंडन के पीछे का सच,
देखो !
ये वही लोग हैं
जो तुम्हारे हिस्से के निर्णय भी स्वयं लेते हैं
तुम्हें महान बताकर
खुद महान बन जाते हैं
फिर ...एक दिन
ये ही निर्धारित करते हैं तुम्हारे लिये अच्छा और बुरा ।

- आनंद 

रविवार, 3 मार्च 2013

मेरे गाँव की औरतें ...



क्षमता से अधिक काम संभालेंगी औरतें
मुस्किल से जुबाँ तल्ख़ निकालेंगी औरतें

जब भी मिलेंगी एक दूसरे से लिपट कर
रो लेंगी अपना  दर्द बहा  लेंगी औरतें

सबको खिलाके जो भी बचा खा के उठ गयीं
खुद को खपा के वंश  को पालेंगी औरतें

कितना भी बात-बात में खिल्ली उड़ाइये
खा-खा के चोट घर को बचा लेंगी औरतें

तन पर पड़े सियाह निशाँ याकि मन के हों
मर्दों के सभी ऐब छुपा लेंगी औरतें

ले ले के नाम प्रेम का छलते रहो इन्हें
बिस्तर की जगह खुद को बिछा लेंगी औरतें

'आनंद' कितने दिन चलेगा तेरा ये फरेब
आखिर कभी तो होश में आ लेंगी औरतें

 -आनंद