क्षमता से अधिक काम संभालेंगी औरतें
मुस्किल से जुबाँ तल्ख़ निकालेंगी औरतें
जब भी मिलेंगी एक दूसरे से लिपट कर
रो लेंगी अपना दर्द बहा लेंगी औरतें
सबको खिलाके जो भी बचा खा के उठ गयीं
खुद को खपा के वंश को पालेंगी औरतें
कितना भी बात-बात में खिल्ली उड़ाइये
खा-खा के चोट घर को बचा लेंगी औरतें
तन पर पड़े सियाह निशाँ याकि मन के हों
मर्दों के सभी ऐब छुपा लेंगी औरतें
ले ले के नाम प्रेम का छलते रहो इन्हें
बिस्तर की जगह खुद को बिछा लेंगी औरतें
'आनंद' कितने दिन चलेगा तेरा ये फरेब
आखिर कभी तो होश में आ लेंगी औरतें
-आनंद
्क्या कहूँ सब आपने कह दिया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल ...मौजूँ मुद्दे की बात पर खूबसूरत शेर !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई !
उम्दा भावबोध की गज़ल ...
जवाब देंहटाएंगहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अज़ीज दोस्तों !
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