बुधवार, 14 नवंबर 2012

टोका ग़ज़ल ने एक दिन


सुनते थे  इश्क से बड़ा मज़हब  नहीं होता
जाना कि इश्क से बड़ा करतब नहीं होता

मैं चाहता था प्यार में थोड़ा वफ़ा का रंग
मालुम हुआ कि आजकल ये सब नहीं होता

वो द्रोपदी की चीर के किस्से का क्या करूँ
बुधिया की आबरू के लिये रब नहीं होता

टोका ग़ज़ल ने एक दिन, जो कह रहे मियां
उससे किसी गरीब का  मतलब नहीं होता

जन्नत की राह होंगी यकीनन तेरी जुल्फें
'आनंद' से जन्नत का सफ़र अब नहीं होता


सोमवार, 12 नवंबर 2012

अभी बहुत दूर है वो दीपावली



जब तक इन घरों में  उजाला नहीं होता
क्या मतलब है मेरे घर में हो रही जगमग का
मैं मान लेता यह बात कि सबका नसीब होता है उसके साथ
यदि
हमने ईमानदारी से इन्हें मौका दिया होता
प्रकृति से आयी निर्बाध रश्मियों को इन तक निर्बाध ही जाने दिया होता
हम मनुष्यों ने किया है मनुष्यों के खिलाफ षड़यंत्र
दोषी हैं हम इनके जीवन के अंधेरों के लिये
और चालाकी की हद तो यह है कि हम आज भी यह बात मानने  को राजी नहीं ....
बुधुआ, कलुआ, रमुआ अभी भी महेसवा ..और न जाने कितने 'आ'
अभी बहुत दूर है वो दीपावली जिसे तुम उमंग से मनाओगे
शायद  मैं तब तक नहीं रहूँगा
काश मैं उस दीपावली का हिस्सा होता
मैं एक बार तुम सबके साथ
छुरछुरिया जलाते हुए नाचना चाहता हूँ
मगर मेरी दिक्कत है कि मैं ढोंग नहीं कर सकता
और इसीलिये शंका में हूँ कि मेरे जीवन में
वैसी दीपावली
शायद ही आये !

- आनंद

रविवार, 11 नवंबर 2012

तुलसी भीतर बाहरो जो चाहसि उजियार !



अँधेरे का नहीं है कोई अस्तित्व
वो तो बस
अभाव भर है
प्रकाश का
अँधेरा
न काट सकते हैं, नाही धक्का देकर भगा सकते हैं
न जला सकते हैं न मिटा सकते हैं
अँधेरे के साथ कुछ भी करना हो तो
प्रकाश के साथ कुछ करना पड़ता है
इसे मिटाने के लिए जलाना पड़ता है प्रकाश को
इसे लाने के लिए बुझाना पड़ता है प्रकाश को

प्रकाश के साथ सब क्रियाएँ संभव हैं
जलते को बुझायाजा सकता है
बुझते को जलाया
एक कमरे में नहीं तो दूसरे से ले आये
अपने घर में नहीं तो पड़ोसी से ले आये

फिर भी है, अँधेरा .....है !
जो नहीं है वो है
जो है वो नहीं है ....
शायद जो है वो दिखता नहीं हमें अपने अहं के कारण
क्या हमारा खुद को न जानना ही तो इसका कारण नहीं
चालीस साल तक आनंद  साथ रहा बुद्ध के
और नहीं जला दीप
अंत में कहना पड़ा बुद्ध को कि 'अप्प दीपो भव'
महानिर्वाण के दो दिन बाद ही आनंद हो गया था प्रकाशित फिर
आयातित प्रकाश
कोठरी में उजाला तो ला सकता है
पर निज में नहीं
एक युक्ति 'बाबा' भी बता गए हैं
"राम नाम मणि दीप धरु जीह देहरी द्वार
तुलसी भीतर बाहरो जो चाहसि  उजियार "
चुनाव आपका अपना है



प्रकाश की शुभकामनाओं के साथ...
-आनंद






शनिवार, 10 नवंबर 2012

भला शख्स कब का खुदा हो गया

सुना है कि अहले वफ़ा  हो  गया
मेरा यार किस पर फ़िदा हो गया

हमारी  सदाएँ  न  सुन  पायेगा
वो मासूम, कब का खुदा हो गया

मैं मुद्दे की बातें तो करता मगर
मेरा  नाम ही  मुद्दआ हो  गया

दिलों की जहाँ से निभी कब मियाँ
मनाया इसे, वो ख़फा हो गया

किसे चाह तर्के-तआल्लुक की थी
जुदा होने वाला  जुदा हो गया

कसम है जो मुँह में जुबाँ भी मिले
मेरा हाल कैसे  बयाँ  हो  गया  ?

तमाशे दिखाने  लगा  दर ब दर
ये 'आनंद' शायर से क्या हो गया

- आनंद
९-११-१२





मंगलवार, 6 नवंबर 2012

हमारी दुनिया

चित्र साभार : इंदिरा विदी 



मैं सोंचता हूँ
कैसे ...
कैसे जा सकते हो तुम
मेरी दुनिया से बाहर 
मैं पूछता हूँ
क्या जा सकते हो
इस आसमाँ से बाहर 
अलग कर सकते हो अपना सूरज 
बना सकते हो 
एक नया चाँद 
एक नयी आकाशगंगा  ?
जब तक तुम अपना सूरज और चाँद 

अलग नहीं कर लेते 
मैं रहूँगा यहीं
तुम्हारी दुनिया में !

कल सुबह जरा जल्दी उठना
और देखना 
सूरज पूरब से ही निकलेगा 
और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि वो 
लाल ही होगा
अगर 
तुमने अंगडाई न ली तो ....
असल में तुम्हारी इस क्रिया के बाद
प्रकृति में क्या क्या बदलाव आते हैं ..
ये उसे खुद पता नही होता 
मैं कहता हूँ 
कवियों और शायरों के बहकावे में मत आओ
देखो हकीकत यही है कि 
मैं अब भी 
तुम्हारी उसी दुनिया में हूँ
जहाँ दोनों की सुबहें साथ होती हैं 
दिन भी 
शामें भी 
और रात भी !

कसमें ...
दीवानों को रोक सकती हैं 
दीवानापन नही 
दीवारें ...
जिस्मों को रोक सकती है 
अहसास नहीं 
समय ...
मौसम बदल सकता है 
प्रेम नही !!

-आनंद 
१४ मई २०१२