सोमवार, 10 सितंबर 2012

बातें है बातों का क्या

तुमने तो कह दिया 
हँस कर 
मुझे 
पागल
माँ की एक बात याद आ रही है 
तभी से 
और 
सोंच रहा हूँ 
काश तुम्हारी जबान पर बैठी होती 
'सरस्वती' |
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करना चाहता हूँ 
एकदम नई शुरुआत 
पर
हे प्रिय मृत्यु !
तेरे सहयोग के बिना 
यह संभव नहीं |

और हे प्रिय जीवन ! 

खुश हूँ 
बल्कि
साफ कहूँ तो
तूने उम्मीद से ज्यादा निभाया है
काश मैं भी किसी के प्रति
इतनी
वफादारी निभा पाता |

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सर्दियों में
सूरज
बहूऊऊऊउत दूर हो जाता है धरती से
तब कितनी अच्छी लगती है न धूप !
सच्ची बताना
दूर होने
और फिर अच्छा लगने का चलन
भगवान ने ही बनाया है क्या ?

वैसे एक बात बताऊँ
तुम दूर होकर
बहुत बुरे लगते हो
हाँ !
:( :(


- आनंद








रविवार, 9 सितंबर 2012

इसमें क्या दिल टूटने की बात है


इसमें क्या दिल टूटने की बात है
जख्म ही तो प्यार की सौगात है

जिक्र फिर उसका हमारे सामने
फिर हमारे इम्तेहां   की रात  है

दो घड़ी था साथ फिर चलता बना
चाँद  की  भी  दोस्तों सी जात है

साथ  अपने  रास्ते  ही  जायेंगे
सिर्फ़ धोखा मंजिलों की बात है

हैं हकीकत बस यहाँ तन्हाइयाँ
वस्ल तो दो चार दिन की बात है

कौन  कहता  है  कि  राहें बंद हैं
हर कदम पर इक नयी शुरुआत है

मत चलो छाते लगाकर दोस्तों
जिंदगी 'आनंद' की बरसात है |


- आनंद 


शनिवार, 8 सितंबर 2012

फ़ुरसत में आज़ सारे जमाने का शुक्रिया

इस नाज़ुक़ी से मुझको मिटाने का शुक्रिया
क़तरे को  समंदर से  मिलाने  का शुक्रिया  

मेरे सुखन को अपनी महक़ से नवाज़ कर
यूँ आशिक़ी का  फ़र्ज़  निभाने का शुक्रिया 

रह रह  के तेरी खुशबू उमर भर  बनी रही
लोबान  की  तरह से   जलाने का शुक्रिया  

इक भूल  कह  के  भूल ही  जाना कमाल है
दस्तूर-ए-हुश्न   खूब  निभाने  का  शुक्रिया

आहों  में  कोई और हो   राहों  में कोई और
ये साथ  है   तो  साथ में  आने  का शुक्रिया 

दुनिया  भी बाज़-वक्त   बड़े  काम की लगी
फ़ुरसत में  आज  सारे ज़माने  का शुक्रिया

जितने थे  कमासुत  सभी शहरों में  आ गए 
इस  मुल्क  को 'गावों का' बताने का शुक्रिया 

ना  प्यार  न सितम  न  सवालात  न झगड़े 
'आनंद'   बे-वजह जिए जाने   का   शुक्रिया 


- आनंद
०४-०९-२०१२
              -


गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आओ आनंद वहीं चल के बसें ...

उसको जिससे भी प्यार होता है
हाय   क्या  बेशुमार   होता  है

मेरा दिलबर मुझे बता के गया
इश्क  भी  बार  बार  होता  है

कौन जन्नत  की  आरजू पाले
जब  खुदा  अपना यार होता है

जिसको नेकी बदी का होश रहे
ख़ाक  वो   इश्कसार  होता  है

जिसकी अश्कों से रात न भीगी
वो   बुतों  में    शुमार  होता है

मैंने  खुद को जला के जाना है
सिर्फ़  हासिल   गुबार  होता है

आओ 'आनंद'  वहीं चल के बसें
जिस जगह अपना यार होता है

- आनंद 

बुधवार, 5 सितंबर 2012

नश्तर (२)

(एक)

कभी कभी मेरा बड़ा मन करता है 
कि मैं 
तुमसे बात करूँ 
उसमें भी 
कभी कभी मैं अपने को रोक ले जाता हूँ 
पर कभी कभी 
असफल भी हो जाता हूँ 
तब लिखता हूँ मैं ... कविता 

मेरी सारी कवितायेँ 
दरअसल मेरी असफलताओं का
दस्तावेजी प्रमाण हैं |

(दो)

एक तस्वीर 
बहुत पुरानी भी नहीं 
तुम 
बेतहाशा मुस्करा रहे हो 
तुम्हारी आँखों से 
छलका पड़ रहा है प्यार 
और छलक रहीं हैं 
मेरी आँखें 
तभी से |

(तीन)
इस बार जब भी
कविता लिखूंगा 

पूरी कोशिश करूंगा कि
तुमको न लिखूं
और अगर लिखूं भी तो 
किसी को कानों-कान खबर न हो

मेरे हुनर की
तारीफ करोगे न तुम ?

(चार)

हिचकी और चीख़  में
फर्क होता है 
भले दोनों की वजूहात एक हों 
घुटी हुई चीख भी 
चीख ही होती है 
जिसे सुनना 
किसी की भी जिम्मेदारी नहीं है |

(पाँच)

नाराज़ किसी और से होना 
और सज़ा खुद को देना 
बड़ी अजीबोगरीब रस्मों का नाम है 
इश्क,
क्या हो जब 
नाराजगी हद से बढ़ जाए 
और फिर सज़ा भी ...

मैं इन सब झमेलों से दूर हूँ 
मेरा जिंदा रहना 
इस बात का सुबूत है |

(छः)

तनहा डगर पर पहला कदम
जैसे घात ही लगाये बैठे थे
एक साथ इतने तूफ़ान,
हर बार यही मन किया कि लौट जाऊं
पीछे मुड़कर देखा भी,
तुम नहीं थे 
होने का कोई चिन्ह भी नहीं
लौटता तो कहाँ
किसके लिए
और मैं चल पड़ा

कई बार मजबूरियाँ भी
बहादुरी बन जाती हैं |

(सात)

जैसे चोट देना 
तुम्हारी फितरत है 
वैसे ही 
उम्मीदें लगाना मेरी, 
बेशक... 
मैं कुत्ते की पूँछ हूँ |

(आठ)

मैं 
कोई दुःख पसंद इंसान नहीं 
खुश हो जाता हूँ 
बहुत छोटी छोटी बातों पर 
तुम चाहो तो
हँसता भी रह सकता हूँ 

पर तुम 
ऐसा क्यों चाहोगी ?
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- आनंद