मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

झूठे हम ...




तुमने कहा.... 
प्रेम ही ईश्वर है 
मैंने मान लिया 
तुमने कहा....
मैं बुद्धू हूँ 
पागल हूँ 
दीवाना हूँ 
मैंने मान लिया 
तुमने कहा..... 
मैं जब भी तुम्हारे पास होती हूँ 
अपने सहज रूप में होती हूँ
अपने स्व में होती हूँ
मैंने मान लिया 
तुम तो हर बात साक्षी भाव से देखते थे न 
तुमने कहा .....
हमें विधाता ने मिलाया है 
ये मिलन अनायास नहीं है 
बल्कि ये रूहों का मिलन है 
मैंने मान लिया 
तुमने कहा .....
तुम न मिलते तो 
अपूर्ण ही रहती मैं 
मैंने मान लिया |

फिर एक दिन ...
तुमने कहा 
हमारा साथ इतने ही दिन का था 
मैंने मान लिया 
तुमने कहा 
तुम्हारे जीवन में मेरी भूमिका पूरी होती है 
मैंने मान लिया 
फिर तुमने कहा 
हमारा मिलना महज़ इत्तेफ़ाक था
मैं चुप रहा 
और सोंचता रहा कि 
परिवर्तन तो जीवंतता की निशानी है 
इससे यही तो साबित होता है कि तुम जीवंत हो 
मगर फिर तुमने कहा ....
सोंच लेना हम राह चलते हुए 
ऐसे ही 'टकरा' गए थे 
उफ्फ़
कैसे कह पाए तुम ये 
पहली और अंतिम बात 
अंतिम ....जो तुमने कही थी
और पहली ...जिसे मैं मान नहीं पाया |

और मैं ...
मैंने तो हर बार एक ही बात कही 
कि मैं.... तुम्हारे बगैर जी न पाऊंगा |
देखो तो ....
कैसे जीवन ने 
हम दोनों को ही 
झूठा साबित कर दिया ||

आनंद 
२४ अप्रेल २०१२ 

एक गीत शिद्दत से याद आ रहा है

http://www.youtube.com/watch?v=u0bfDPsWxQY&feature=fvst

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कौन याद रक्खे उम्र भर...




कुछ और देखने दे,  जरा जिंदगी ठहर, 
मेरा रकीब कौन है और कौन रहगुजर |

ईमान ही साथी है  तो उसको भी  देख लूं ,
कल तक तो 'यही दोस्त' था मेरा इधर उधर |

जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर  सफ़र |

दो घूँट हलक में गये,  हर दर्द उड़न छू,
बेशक बुरी शराब हो, पर है ये कारगर |

मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |

खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
'आनंद' !  तुझे कौन याद  रक्खे  उम्र भर  |

-आनंद
२१ अप्रेल २०१२ 

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

ऐसे ही नहीं आग लगाते रहे हैं लोग




ऐसे ही नहीं  आग  लगाते रहे  हैं लोग, 
जलने का सलीका भी सिखाते रहे हैं लोग 

थोड़ी बहुत तो मेरी फिकर भी रही उन्हें
अपने तमाम फ़र्ज़ निभाते रहे  हैं लोग 

क्या कीजिये जो कोई दुआ काम न करे,
मेरे  लिए  तो  हाथ  उठाते रहे  हैं लोग

मैं चल न पडूँ उनकी तरफ, डर था उन्हें भी,
क़दमों के निशाँ तक को, मिटाते रहे हैं लोग 

चलना फ़ना की राह तो फिर ये हिसाब क्या
किस किस तरह से मुझको सताते रहे हैं लोग 

'आनंद' कहाँ खो गया  जिससे  भी  पूछिए
दिल्ली कि तरफ हाथ उठाते  रहे हैं लोग

आनंद 
९ अप्रेल २०१२.

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

डॉट्स . . . की भाषा !



कभी कभी 
सारा अध्यन ...सारी शिक्षा,
हर किताब 
हर सीख ....और
तुम्हारी समझायी हर बात पर
भारी पड़ जाता है मेरा दर्द, 
और ऐसे क्षणों में फिर मैं 
कर बैठता हूँ .....
तुमको एक  'एस एम एस'
जिसमे लिखा होता है केवल एक नाम 
और कुछ डॉट्स. . . बस !

अच्छे से जानता हूँ कि
तुम्हारे निजी संसार में
मेरा इस तरह
रह रह कर जिन्दा होना
तुम्हें जरा भी पसंद नही
पर क्या करूं ?
मैं ये भी तो अच्छी तरह से जानता हूँ ...कि 
सारी दुनिया में केवल
एक तुम्हें ही
उन डॉट्स . . . की भाषा पढ़नी आती है !

"मैं आज भी वहीँ हूँ "
मेरे लिए यह कथन ...
न पूरा सच है न पूरा झूठ
धरती का गुरुत्वाकर्षण 
कुछ तो कमजोर पड़ा है 
अब वह सिमटकर
केवल उतना भर रह गया है
जितनी कि तुम स्वयं
और जिस किसी भी दिन
तुम नही रहोगी ........
मैं झट से 
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर चला जाऊंगा
पर
एक बात बोलूं
मेरी जरा भी दिलचस्पी 
न तो निराकार में है 
और न मोक्ष में
मैं तो सृष्टि के अंत तक चलता रहना चाहता हूँ
एक तुम्हारी सुगंध भर लिए हुए
जिससे सुवासित है
मेरी आत्मा .... 
और 
मेरे आने वाले अनेक जन्म !!

आनंद
०६-०४-२०१२  

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

इक जिस्म रह गया हूँ महज




अब मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा, 
इक जिस्म रह गया हूँ महज, दिल नहीं रहा |

कैसे गुमान होता मुझे अपने क़त्ल का, 
जब मैं किसी के ख़्वाब का क़ातिल नही रहा |

जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
अय जिंदगी, मैं तेरे  मुक़ाबिल  नही रहा  |

मँझधार ही नसीब है,  या पार लगूंगा ?
हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |

दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा |

'आनंद' मिट गया औ भनक भी नही लगी,
पहले तो मैं इतना कभी गाफ़िल नहीं रहा  !

आनंद द्विवेदी 
३० मार्च २०१२