दुनिया भर का दर्द भगाने निकल पड़े
हम भी अपना जी बहलाने निकल पड़े
दिल की गलियों से जीवन की राहों तक
कदम कदम पर धक्के खाने निकल पड़े
त्यौहारों पर यादें भी घर आती हैं
मुँह से कुछ अशआर पुराने निकल पड़े
कल नुक्कड़ पर जाने किसका ज़िक्र हुआ
दिल में सारे दफ्न ज़माने निकल पड़े
सच के नाके पर जिनकी तैनाती थी
वो ले दे कर काम बनाने निकल पड़े
जिनको नाम कमाने की कुछ जल्दी थी
लेकर झूठ, फ़रेब, बहाने, निकल पड़े
कई पीढ़ियों से जो हमको लूट रहे
वो भी मुल्क़ मुल्क़ चिल्लाने निकल पड़े
सोशल नेटवर्किंग में घर की फिक्र किसे
सब बाहर की आग बुझाने निकल पड़े
हम देसी गुड़ हैं, जाड़ों भर अच्छे हैं
कुछ दिन का आनंद लुटाने निकल पड़े।
© आनंद
वाह ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंनये साल कि ढेर सारी शुभकामनाऐ
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