बुधवार, 20 अगस्त 2014

भरोसा

अब … जबकि
दिन ब दिन
तुम्हें 'तुम' कहना मुस्किल होता जा रहा है
मैं समेट रहा हूँ
धीरे धीरे
अपने सारे शोक गीत
और उनके साथ लिपटी अपनी परछाइयाँ
रखूँगा सहेज कर
इन सबको
एक ही कपड़े में बाँधकर
अपने इस भरोसे के साथ
कि एक न एक दिन प्रेम
ज्यादा जरूरी होगा
सुविधा और सुक़ून से  !

- आनंद


मंगलवार, 19 अगस्त 2014

तुम्हारा वज़्न

ग़ज़ल के मिसरे में
एक वज़्न ज्यादा तो हो सकता है
पर हरगिज़ नहीं चल सकता एक वज़्न कम

इसीलिए जब तुम नहीं होते
नहीं होती हैं मुझसे ग़ज़लें
नहीं बनते हैं मिसरे

तब मैं रहता हूँ
केवल
अतुकांत  
तुम...
मेरा तुक भी हो
अंत भी !

- आनंद 

बुधवार, 13 अगस्त 2014

शिकायतें

जब देखो
मेरे आसपास  बिखरी पड़ी रहती हैं
मेरी ही अनगिनत शिकायतें
ज्यादातर तुमसे
कुछ ईश्वर से
और कुछ अपने आप से 

असल में वो मेरी

उम्मीदें हैं 
जो शिकायतों का भेष बनाकर
उन उनसे मिलती हैं
जिनसे वो हैं

- आनंद 

शनिवार, 9 अगस्त 2014

शब्दों में धड़कन ले आओ

शब्दों में धड़कन ले आओ
बातों में जीवन ले आओ

धरती पर आकाश न लाओ
जन तक गण का मन ले आओ

बच्चे फिर गुड़ियों से खेलें
जाकर उनसे 'गन' ले आओ

थोड़ा कम विकास लाओ पर
बच्चों में बचपन ले आओ

जंग असलहों में लग जाए
ग़ज़लों में वो फ़न ले आओ

शहर बसाने वालों उसमें
अम्मा का आँगन ले आओ

मत ढूंढो आनंद कहीं पर
केवल सच्चा मन ले आओ

- आनंद

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

उसकी बातें

गाढ़े वक़्त के लिए बचाए गए धन की तरह
वह खर्च करती है
एक एक शब्द ;
न कम न ज्यादा,

और मुझे ....
उतने से ही चलानी होती है
अपने प्रेम की गृहस्थी,

महीने के उन दिनों में भी
जब वह नहीं खर्चती एक भी शब्द ...!

- आनंद