बुधवार, 20 अगस्त 2014

भरोसा

अब … जबकि
दिन ब दिन
तुम्हें 'तुम' कहना मुस्किल होता जा रहा है
मैं समेट रहा हूँ
धीरे धीरे
अपने सारे शोक गीत
और उनके साथ लिपटी अपनी परछाइयाँ
रखूँगा सहेज कर
इन सबको
एक ही कपड़े में बाँधकर
अपने इस भरोसे के साथ
कि एक न एक दिन प्रेम
ज्यादा जरूरी होगा
सुविधा और सुक़ून से  !

- आनंद


1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर और भावुक रचना ----
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ----

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
    कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

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