बुधवार, 13 अगस्त 2014

शिकायतें

जब देखो
मेरे आसपास  बिखरी पड़ी रहती हैं
मेरी ही अनगिनत शिकायतें
ज्यादातर तुमसे
कुछ ईश्वर से
और कुछ अपने आप से 

असल में वो मेरी

उम्मीदें हैं 
जो शिकायतों का भेष बनाकर
उन उनसे मिलती हैं
जिनसे वो हैं

- आनंद 

शनिवार, 9 अगस्त 2014

शब्दों में धड़कन ले आओ

शब्दों में धड़कन ले आओ
बातों में जीवन ले आओ

धरती पर आकाश न लाओ
जन तक गण का मन ले आओ

बच्चे फिर गुड़ियों से खेलें
जाकर उनसे 'गन' ले आओ

थोड़ा कम विकास लाओ पर
बच्चों में बचपन ले आओ

जंग असलहों में लग जाए
ग़ज़लों में वो फ़न ले आओ

शहर बसाने वालों उसमें
अम्मा का आँगन ले आओ

मत ढूंढो आनंद कहीं पर
केवल सच्चा मन ले आओ

- आनंद

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

उसकी बातें

गाढ़े वक़्त के लिए बचाए गए धन की तरह
वह खर्च करती है
एक एक शब्द ;
न कम न ज्यादा,

और मुझे ....
उतने से ही चलानी होती है
अपने प्रेम की गृहस्थी,

महीने के उन दिनों में भी
जब वह नहीं खर्चती एक भी शब्द ...!

- आनंद

सोमवार, 4 अगस्त 2014

तेरा होना

दुनिया के सारे अभावों
सारी कमियों पर भारी पड़ता है
एक तेरा होना
तेरा होना हूबहू तो नहीं पर
कुछ कुछ वैसा ही है
जैसे एक सैनिक ने पहन रखा हो कवच
और ले रखी हो ढाल जीवन की सबसे कठिन लड़ाई में,
जैसे भाई की बीमारी की ख़बर सुन
झट से आ गया हो
परदेश गया भाई,
जैसे निराशा भरे समय में चुपचाप रख दे
कोई दोस्त कंधे पर अपना हाथ,
जैसे पिता के होते बच्चों के जीवन में बनी रहे
एक अनजान लापरवाही,

तेरा होना कुछ कुछ वैसा ही है
जैसे सरहद पर किसी फौजी को मिल जाए
घर से आई चिट्ठी,
जैसे जेठ की किसी बेहद गर्म शाम में
हल्के हल्के झोकों से चल पड़े पुरवाई,
जैसे हवनकुंड हो जाये यह सारी देह
दूर तक हवा की दिशा में जाए
गूगर धूप और चंदन के जलने की महक,
जैसे जीवन की राहों पर मिल जाए
अपना मनचाहा साथ,
जैसे तारों भरी आधी रात में
नाच उठे कोई फ़कीर,

असल में तेरा होना
कुछ कुछ वैसा ही है
जैसे मुकम्मल हो जायें
जीवन के लाखों आधे अधूरे ख्वाब !

- आनंद






रविवार, 27 जुलाई 2014

अपने अपने भय

मत बढ़ाना एक भी कदम
मेरी तरफ़
कि मेरा पहले से ही भयभीत भय
सहम जाता है जरा और
वो जानता है कि
पास आने के लिए उठा हर कदम
अंततः दूर ही ले जाता है
जैसे हर सुख की परिणिति
अवश्यम्भावी है दुःख !
जैसे हर शब्द युग्म में आवश्यक रूप से होता है
उसका विलोम
जैसे जीत में हार
और जन्म में मृत्यु

मेरा भय, भयभीत नहीं हुआ जीवन से
न ही उसके संघर्षों, जटिलताओं से
वो न भूख से डरा न प्यास से
न श्रम से न थकान से
'प्रत्येक क्रिया की आवश्यक प्रतिक्रिया' को
ठीक से समझता
मेरा भय
भयभीत है तो बस किसी के पास आने से
कोई रिश्ता बनाने से
कुछ भी और पाने से !

- आनंद