मत बढ़ाना एक भी कदम
मेरी तरफ़
कि मेरा पहले से ही भयभीत भय
सहम जाता है जरा और
वो जानता है कि
पास आने के लिए उठा हर कदम
अंततः दूर ही ले जाता है
जैसे हर सुख की परिणिति
अवश्यम्भावी है दुःख !
जैसे हर शब्द युग्म में आवश्यक रूप से होता है
उसका विलोम
जैसे जीत में हार
और जन्म में मृत्यु
मेरा भय, भयभीत नहीं हुआ जीवन से
न ही उसके संघर्षों, जटिलताओं से
वो न भूख से डरा न प्यास से
न श्रम से न थकान से
'प्रत्येक क्रिया की आवश्यक प्रतिक्रिया' को
ठीक से समझता
मेरा भय
भयभीत है तो बस किसी के पास आने से
कोई रिश्ता बनाने से
कुछ भी और पाने से !
- आनंद
मेरी तरफ़
कि मेरा पहले से ही भयभीत भय
सहम जाता है जरा और
वो जानता है कि
पास आने के लिए उठा हर कदम
अंततः दूर ही ले जाता है
जैसे हर सुख की परिणिति
अवश्यम्भावी है दुःख !
जैसे हर शब्द युग्म में आवश्यक रूप से होता है
उसका विलोम
जैसे जीत में हार
और जन्म में मृत्यु
मेरा भय, भयभीत नहीं हुआ जीवन से
न ही उसके संघर्षों, जटिलताओं से
वो न भूख से डरा न प्यास से
न श्रम से न थकान से
'प्रत्येक क्रिया की आवश्यक प्रतिक्रिया' को
ठीक से समझता
मेरा भय
भयभीत है तो बस किसी के पास आने से
कोई रिश्ता बनाने से
कुछ भी और पाने से !
- आनंद
मन को छूती सुन्दर अभियक्ति ----
जवाब देंहटाएंसादर ---
आग्रह है -- नदारत हो जायेगी धूप ------
जो पास आता है दूर जाता है...पर जिससे दूर जाने का प्रयास होगा वही पास भी तो आयेगा..
जवाब देंहटाएंजी दीदी :)
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज बुधवार ३० जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- बेटियाँ बोझ नहीं हैं– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
जवाब देंहटाएंएक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
सादर आभार!
सुन्दर अभिव्यक्ति...
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