मंगलवार, 24 जून 2014

अच्छे लगते हैं ...

राह दिखाने वाले अच्छे लगते हैं
मुझे ज़माने वाले अच्छे लगते हैं

पहले खुशियाँ देने वाले भाते थे
इधर रुलाने वाले अच्छे लगते हैं

कौन रुकेगा मरघट जैसी बस्ती में
आने जाने वाले अच्छे  लगते हैं

तारीफों का हासिल जब से देखा है
मुँह बिचकाने वाले अच्छे लगते हैं

चाहे जितनी मक्कारी की जै जै हो
हक़ की खाने वाले अच्छे लगते है

प्रेम मिटाने वालों की इस दुनिया में
प्रेम निभाने वाले अच्छे लगते हैं

सूली ऊपर सेज बिछायी जालिम ने
चढ़-चढ़ जाने वाले अच्छे लगते हैं

जाने ऐसा क्यों है मुझको बचपन से
धोखे खाने वाले अच्छे लगते हैं

उद्धव ये आनंद निराला है, इसमें
आग लगाने वाले अच्छे लगते हैं

- आनंद 

शनिवार, 21 जून 2014

इतना तो जाना है हमने ...

इतना तो जाना है हमने सबकी कथा-कहानी से
सबके जीवन में आते हैं कुछ पल राजा-रानी से

जुदा नहीं कर पाती जिनको दुनिया भर की दुश्वारी
अहम जुदा कर देता उनको चुटकी में आसानी से

धरती-अम्बर जैसी दूरी हो पर प्रेम न कम होता
कम होता है प्रेम हमेशा बंधन से मनमानी से

उम्मीदों से सींचा पौधा नाउम्मीदी सह न सका
ऐसे रिश्ते बन जाते हैं अक्सर पावक-पानी से

या तो अपने में ही डूबो या फिर उसके हो जाओ
थोड़ा थोड़ा सबमें रहना, होता है बेइमानी  से

मीठा-मीठा गप्प यहाँ है कड़वा-कड़वा थू थू है
परमारथ कह स्वारथ बेचें, सोच-कर्म से वानी से

रहने दो 'आनंद' अकेला, चलने दो तनहा इसको
इसकी आँखें गीली हैं तो,  खुद इसकी नादानी से

- आनंद



रविवार, 15 जून 2014

रिश्ता

उससे अपने अंदर जैसा रिश्ता है
कोई बूँद-समंदर जैसा रिश्ता है

खिल उठता है जीवन हर दुश्वारी में
शायद वर्षा-बंजर जैसा रिश्ता है

वो ज़ख़्मों का बायस भी है, मरहम भी
कैसा मस्त कलंदर जैसा रिश्ता है

हम भी दुनिया के पापों में शामिल हैं
गाँधी जी के बंदर  जैसा रिश्ता है

सपनों का 'आनंद', जगत की सच्चाई
एकदम छाती-खंज़र  जैसा रिश्ता है

- आनंद 

मंगलवार, 27 मई 2014

धड़कन

मन करता है नाचने का
पाकर तुम्हारी आहट,
मुरझा जाता है मन
जरा ही देर में
तुम्हारे ओझल होते ही,
तुम कहते हो
मैं एक सा क्यों नहीं रहता हमेशा

मैं कहता हूँ
तुम पास क्यों नहीं रहते हमेशा,
हमेशा ही घटती-बढ़ती धडकनों के बीच
कोई कैसे रहे 
एक सा !


- आनंद

शुक्रवार, 9 मई 2014

देश गीत

है जहाँ सुरभित पवन, वह  देश मेरा
है जहाँ आज़ाद मन, वह  देश मेरा

जो जगत को एक ही परिवार समझे
जो अतिथि समझे, अतिथि सत्कार समझे
हैं जहाँ संबंध भावों से भरे सब
साथ रहते हैं अभावों में खड़े सब
संस्कृति की नदी निर्झर बह रही है
ज्ञान पाओ ज्ञान बांटो कह रही है
आस्था से भरे हैं कण कण हमारे
देश पर कुर्बान हैं जीवन हमारे

हैं जहाँ सब सरल जन वह देश मेरा
है जहाँ सुरभित पवन वह देश मेरा

यहाँ हर सप्ताह ही त्यौहार आते
सामुदायिक भावना जो साथ लाते
फूँकते हम आज भी दस शीश वाले
लाख कोई व्यर्थ का अभिमान पाले
हैं अज़ानें सुबह की हम को जगाती
मंदिरों की घंटियाँ भी गीत गाती
'एक है रब' गा रही है गुरु की वाणी
एक हैं हम, एकता अपनी निशानी

भिन्न होकर एक मन, वह देश मेरा
है जहाँ आज़ाद मन, वह  देश मेरा
है जहाँ सुरभित पवन, वह देश मेरा

- आनंद