शनिवार, 15 मार्च 2014

होरी में विरह ; कुछ दोहे



मस्तानों की टोलियाँ नाचें ढोल बजाय
फागुन में सब छूट है , चाहे जो बौराय

भरि पिचकारी आगया करने तंग बसंत
ज्यों सपनों में छेड़ते हैं परदेशी कंत

अँगिया गीली हो गयी सिहरै सकल शरीर
दोखी फागुन का जनै बिरही मन कै पीर

मस्ती सारे बदन में, अंखियन चढ़ा खुमार
बिन साजन बैरी हुआ, होरी का  त्यौहार

मन का पंछी है हठी ढूँढै  लाख  उपाय
प्रियतम की तस्वीर में रहा अबीर लगाय

तान न छेड़ो फाग की डारो नहीं गुलाल
ये ऋतु है उनके बिना जस विधवा का गाल

- आनंद
होली २०१४ पर








बुधवार, 5 मार्च 2014

कौन ऐसी आँख है जो नम नहीं

कौन ऐसी आँख है जो नम नहीं  हैं दोस्तों
कौन है ऐसा जिसे कुछ ग़म नहीं है दोस्तों

आइये मिलकर उजालों के लिए आगे बढ़ें
इन अंधेरों में जरा भी  दम नहीं है दोस्तों

डूबिये तो, एक लम्हे में सदी मिल जायेगी
चार दिन की जिंदगी भी कम नहीं है दोस्तों

मुस्कराकर पूछते हैं वो उदासी का सबब,
ये सरासर चोट है मरहम नहीं है दोस्तों

क्यों किसी के साथ में आनंद को खोजें भला
छोड़िये भी , हम अकेले कम नहीं हैं दोस्तों

- आनंद






बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

उसका खो जाना

वो खो गया
ठीक उसी समय
जब वो मिल रहा था
वो खो गया
ठीक वैसे ही
जैसे खो जाता है
ग़ज़ल का कोई मिसरा
समय से कागज़ पर न उतरा तो
कागज़ पर कहाँ उतर पाती हैं
जीवन की हर ख्वाहिशें,

मैं भूल जाऊंगा उसका खो जाना
शायद उसे भी, 
किन्तु याद रहेगा युगों तक
उसका मुझमें उतरना
जैसे गिरती है बिजली
किसी दुधारू पेड़ पर !

- आनंद

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

मुगालते

कुछ मजबूरियां
करतब समझी जाती हैं,
कुछ करतब
मजबूरी  में ही संभव हैं

कुछ दर्द ...
कविता को जन्म देते हैं
कुछ
कविता से दूर करते हैं,

मौत के कुएँ में गाड़ी चलाना
मजबूरी है, दर्द है
कविता है
या करतब ?

कुछ सपने चरितार्थ करते हैं अपना नाम
और रहते हैं ताउम्र
ठेंगहा यार की तरह जबरिया साथ

कुछ साथ ...
एकदम सपने की तरह
लाख कट्टी साधे पड़े रहो
नहीं शुरू होते दुबारा
एक बार टूट जाने पर,

तुम सपना हो,
साथ हो... या फिर दर्द ?

कुछ आँसू
आनंद बनकर बहते हैं आँख से
तो कुछ आनंद....
आँसुओं की राह मिलते हैं खाक़ में

मैं आनंद हूँ
आँसू हूँ
या खाक़ ?



  

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

जिंदगी का प्रश्नपत्र ...



जिंदगी के प्रश्नपत्र में,
अनिवार्य प्रश्नों की जगह
कभी नहीं रहा प्रेम,
यद्यपि वह होता
यदि मैं निर्धारित करता
जीवन और परीक्षा
अथवा दो में से कोई एक,

भूख और जरूरतें...
सदैव बनी रहीं
दस अंकों का प्रथम अनिवार्य प्रश्न ,
समाज और परिवार
कब्ज़ा जमाये रहे
दूसरे पायदान पर,

मैं और मेरा प्रेम
खिसकते रहे
वैकल्पिक प्रश्नों की सारणी में
और जुटाते रहे
हमेशा, जैसे तैसे
उत्तीर्ण होने भर के अंक !

- आनंद