सोमवार, 22 अप्रैल 2013

जो है सो है


तुमने भी
कुछ तो खोया है
और उसका अहसास तक नहीं,
तुम शुरू से
एक नंबर की लापरवाह हो,

परेशान मत होना
मैंने सहेज लिया है
वो सब
जो बेकार है तुम्हारे लिये
किसी के लिये भी

मेरा क्या
उदास दिन, उदास रातें
उदास मौसम
उदास हवा, पानी, पेड़-पौधे
किसी पर भी इल्ज़ाम लगा दूँगा
कुछ भी

पर नहीं कहूँगा
कि तुम हो कहीं
मेरे अंदर अब भी
तुम्हारे लाख न चाहने के बावजूद

देखो खीझो मत !
अब
जो है सो है |

- आनंद

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

दुश्मन भले न हों, ये किसी काम के नहीं

रोटी की कद्र है मुझे दिलदार की तरह
पैसा भी जरूरी है किसी यार की तरह

हर बात आईने की तरह साफ़ हो गयी
बैठा हूँ घर में जब कभी बेकार की तरह

कितनी बुराइयाँ हों मगर काम आऊँगा
अब भी हूँ अपने गाँव के बाज़ार की तरह

जब भूख औ फ़साद साथ हों तो जानिये 
सरकार काम कर रही सरकार की तरह

दुश्मन भले न हों, ये किसी काम के नहीं
जो लोग चुप हैं वो हैं  गुनहगार की तरह

'आनंद' कई लोग राज़ जानते हैं ये
कैसे रहें वो हर जगह मुख्तार की तरह

_ आनंद 

हम रामराज लायेंगे गुजरात की तरह

हम रामराज लायेंगे गुजरात की तरह
इस देश को बनायेंगे गुजरात की तरह

बस एक बार होंगे जो होने हैं फ़सादात
झगड़े की जड़ मिटायेंगे गुजरात की तरह

अपराध नहीं पनपेगा, मुज़रिम न बचेगा
सबको सज़ा दिलायेंगे गुजरात की तरह

क्या कीजियेगा रंग-रंग के गुलों का आप
कुछ रंग हम हटायेंगे गुजरात की तरह

आतंकियों, जहाँ भी तुम्हारा मिला वजूद
वो बस्तियाँ मिटायेंगे गुजरात की तरह

पहले तमाम काम एजेंडे के करेंगे
पीछे विकास लायेंगे गुजरात की तरह

इस बार जो  खायेंगे शपथ संविधान की
फिर घर नहीं जलायेंगे गुजरात की तरह

'आनंद' तू तो अपना है बेकार में न डर
हम गैर को सतायेंगे गुजरात की तरह

- आनंद


सोमवार, 15 अप्रैल 2013

इतना भी गुनहगार न मुझको बनाइये

इतना भी गुनहगार न मुझको बनाइये
सज़दे के वक़्त यूँ न मुझे  याद आइये

नज़रें नहीं मिला रहा हूँ अब किसी से मैं
ताक़ीद कर गए हैं वो, कि, ग़म छुपाइये

मतलब निकालते हैं लोग जाने क्या से क्या
आँखें छलक रहीं हो अगर मुस्कराइये

वो शख्स मुहब्बत के राज़ साथ ले गया
अब लौटकर न आयेगा, गंगा नहाइये

सदियों का थका हारा था दामन में रूह के
'आनंद' सो गया है, उसे मत जगाइये 

- आनंद



शनिवार, 13 अप्रैल 2013

ये ज़ख्म जरा और उभर आये तो अच्छा

ये  ज़ख्म जरा और  उभर आये  तो अच्छा
वो शख्स इधर होके गुजर जाए तो अच्छा

उसकी निगाहे-नाज़ बने क़त्ल का सामाँ
खंज़र की तरह दिल में उतर जाए तो अच्छा

जिसने भी कहा हो कभी, 'है इश्क़ ही ख़ुदा'
अब अपने बयानों में असर लाये तो अच्छा

वैसे तो वो मिसाल है अपने में आप ही
आदत भी अगर थोड़ी सुधर जाए तो अच्छा

सड़कों पे देर रात,  भटकती  है  एक  शै
उसके ज़ेहन में घर भी कभी आये तो अच्छा

'आनंद' यही इल्तिज़ा करता है रात दिन
तेरा लबों पे नाम हो मर जाए तो अच्छा

- आनंद