रोटी की कद्र है मुझे दिलदार की तरह
पैसा भी जरूरी है किसी यार की तरह
हर बात आईने की तरह साफ़ हो गयी
बैठा हूँ घर में जब कभी बेकार की तरह
कितनी बुराइयाँ हों मगर काम आऊँगा
अब भी हूँ अपने गाँव के बाज़ार की तरह
जब भूख औ फ़साद साथ हों तो जानिये
सरकार काम कर रही सरकार की तरह
दुश्मन भले न हों, ये किसी काम के नहीं
जो लोग चुप हैं वो हैं गुनहगार की तरह
'आनंद' कई लोग राज़ जानते हैं ये
कैसे रहें वो हर जगह मुख्तार की तरह
_ आनंद
पैसा भी जरूरी है किसी यार की तरह
हर बात आईने की तरह साफ़ हो गयी
बैठा हूँ घर में जब कभी बेकार की तरह
कितनी बुराइयाँ हों मगर काम आऊँगा
अब भी हूँ अपने गाँव के बाज़ार की तरह
जब भूख औ फ़साद साथ हों तो जानिये
सरकार काम कर रही सरकार की तरह
दुश्मन भले न हों, ये किसी काम के नहीं
जो लोग चुप हैं वो हैं गुनहगार की तरह
'आनंद' कई लोग राज़ जानते हैं ये
कैसे रहें वो हर जगह मुख्तार की तरह
_ आनंद
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 20/04/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़ल आनंद जी.....
जवाब देंहटाएंमैं भी हूँ काम का...गाँव के बाज़ार की तरह....बहुत खूब!!!!
अनु
बहुत सुन्दर....प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंपधारें बेटियाँ ...
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
जवाब देंहटाएंजो लोग चुप वो गुनाहगार की तरह..