रविवार, 10 नवंबर 2013

बे-उमंग !

सुबह गुनगुने सूरज के बगल में
एक सिंहासन खाली देख
मन उदास हो गया
आज मेरे ख्वाबों ने
उसे
वहाँ
मेरे लिए ही तो रखा था

मोबाइल में सन्देश की धुन बजते ही
लपक कर उठाया
और पाया कि 
अल-सुबह मोबाइल कंपनी ने
बिल भेजे जाने की अग्रिम सूचना भेजी है
नहीं भेजा तुमने
कुछ भी
कभी भी
मेरे लिए

और इस तरह एक बार फिर
मैं धरती पर ही हूँ
नहीं निकल सका उस यात्रा पर
जिसका टिकट हमेशा तुम्हारे पास था,
राम जाने
चलने से पहले
ऐसा क्यों किया तुमने
पर अब लगता है कि
ठीक ही किया

तुम पर अटूट विश्वास …  मेरी शक्ति
धीरे धीरे
बदल गयी.....  मेरी दुर्बलता में,
तुम देखते रहे
हमेशा निस्पृह,
निस्संग
बेउमंग

तुम्हारे लिए मेरी ये अंतिम कविता है
एकदम वैसी ही बेउमंग
जिसे मैं चाहूँगा
तुम कभी न पढ़ो !

- आनंद

शनिवार, 9 नवंबर 2013

मन के या बे-मन के हैं


मन के या  बे-मन के हैं  
हम भी फूल चमन के है

मेरे ग़म का रंज़ न कर
हम ऐसे बचपन के हैं 

सच को देखे कौन भला 
सारे दृश्य नयन के हैं

बातें त्याग तपस्या की
लेकिन ध्यान बदन के हैं

अपने प्राण-पखेरू भी
कल को नील गगन के हैं

एक हो गयी है दुनिया
तन मन से सब धन के हैं 

किससे क्या उम्मीद करूँ
सब तो अपने मन के हैं

साँसों तुम ही थम जाओ
सब झँझट धड़कन के हैं

है 'आनंद' नाम भर का
दर्द सभी जीवन के हैं

 - आनंद









गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तू है ख़ुदा, तो कर ये...


तू है ख़ुदा, तो कर ये एहतराम के लिए
थोड़ा सा दर्द भेज, आज  शाम के लिए

जो रिंद कभी होश में आया न उम्र भर
उसको न रोक यार, एक ज़ाम के लिए

इतनी न दिखा मुझपे सितमगर इनायतें
तू ही  बहुत है, हसरते-नाकाम के लिए

मुंसिफ़ है तू, गवाह भी है, मुद्दयी भी है
हाज़िर है गुनहगार भी इल्ज़ाम के लिए

आनंद ! कभी जिंदगी  से पूछ भी तो ले
है नाम के लिए या किसी काम के लिए

- आनंद




बुधवार, 6 नवंबर 2013

सुनो तुम ...

गोली मारो प्रेम को
हो सके तो कभी एक बात का ख्याल करना
एक जोड़ी गीली आँखें
एक अदद खाली खाली दिल
इनको जैसे तैसे संभाले एक काया
और है...
तुम्हारे पास
तुम्हारे व्यक्तित्व के अतिरिक्त,
जिसका अपना कुछ नहीं
पहचान भी नहीं !

सुनो...! स्टैंडबाई चीज़ें भी
कभी इस्तेमाल न होने पर
इस्तेमाल लायक नहीं रहती फिर !

- आनंद 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

लगा लो दाँव !



तुम्हारी होगी एक्का की तिरियल
तुम जब तक पत्ते खोलते नहीं
मैं चलता जाऊँगा दाँव
अपने 'कलर' के बूते पर ही
तुम चतुर खिलाड़ी होगे
मगर अपने रंग पर मेरा भी भरोसा
अटूट है
तुम सब कुछ जीत के भी हारोगे
मैं सब कुछ हार के भी तुम्हें जिताऊंगा
देखता हूँ पहले 'शो' कौन कराता है

कुछ लोग
पत्ते सामने गिरते ही उठा लेते हैं
पहर भर लगाते हैं गणित
मगर कुछ लोग.… 
छूते भी नहीं पत्ती,
अंधी चल देते हैं
अपनी सबसे अहम बाजी,
इस तरह मुस्कराओ मत
ऐसे लोग केवल हारने के लिए खेलते हैं
क्योंकि सामने जीत रहा होता है
उनका
खुदसे भी ज्यादा अपना

तुम कोई बड़ा दाँव नहीं खेलोगे
जानता हूँ
तुम्हें न खुद पर यकीन है
न अपने पत्तों पर
और न ही मुझ पर
एक तीसरा खिलाड़ी भी है.....  मुकद्दर !
अगली बाज़ी  उस पर ही छोड़ते हैं
अक्सर तुरुप की चाल
उधर से ही आती है !

- आनंद