सुहानी राह है, हम हैं, सफर है
यहाँ से ज़िंदगी हद्दे नज़र है
मुहब्बत नाम की एक शै मिली है
मगर वो इस जहाँ से बेख़बर है
महकते गेसुओं ने ख़त लिखा है
मुसाफिर, अब ये दूरी मुख़्तसर है
ये मस्ती चाल की ये लड़खड़ाहट
ये मयख़ाना नहीं उसकी नज़र है
हमारे ग़म, हमीं को बेंच देगा
यही बाज़ार का असली हुनर है
कबीरों की न अब कोई सुनेगा
सियासत का बड़ा गहरा असर है
कहीं आनंद मिलता हो तो ले लें
ये बस्ती तो प्रदूषण है ज़हर है ।
© आनंद
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, १७ दिसम्बर को लिया गया था शेर ए पंजाब का प्रतिशोध “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआप की रचना को सोमवार 18 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सूंदर और अर्थपूर्ण
जवाब देंहटाएंवाह! शानदार ग़ज़ल ! मृदुल एहसासों की ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति. बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएं