वेटिंग रूम से ...कविता .... की अगली और अंतिम कड़ी
याद आ रहा है मुझे
गुज़रते हुए इस
अनिश्चितकालीन प्रतीक्षा से
कहा था कभी
तुमने
कि बदलती है
कि बदलती है
अनिश्चित प्रतीक्षा
जब
जब
अंतहीन प्रतीक्षा में
तब
तब
ऊब कर
लौटता है
मन
वापस
वापस
अपने घर की ओर ...
गूँज गए हैं
गूँज गए हैं
तुम्हारे शब्द
अंतर्मन में मेरे-
"मुड़ो अपनी ओर..
डूबो खुद में
मैं वहीँ हूँ
तुम्हारे भीतर
मत ढूंढो मुझे बाहर
बस खुद से मिलो ..
मिलो तो एक बार !!!"
हाँ !!
यही कहा था तुमने...
और फिर मैंने भी
स्थगित कर दी
आगे की यात्रा,
अनिश्चित का इंतज़ार,
लौट पड़ा हूँ घर को
तुम्हारे भीतर
मत ढूंढो मुझे बाहर
बस खुद से मिलो ..
मिलो तो एक बार !!!"
हाँ !!
यही कहा था तुमने...
और फिर मैंने भी
स्थगित कर दी
आगे की यात्रा,
अनिश्चित का इंतज़ार,
लौट पड़ा हूँ घर को
तुम्हारे शब्दों में जादू है
या मेरे विश्वास में ?
कह नहीं सकता
या मेरे विश्वास में ?
कह नहीं सकता
किन्तु ...
डूबने लगा हूँ मैं
खुद में..
करने लगा हूँ
डूबने लगा हूँ मैं
खुद में..
करने लगा हूँ
तैयारी
एक महायात्रा की...
आ रहा हूँ
तुम्हारे पास ,
इसी विश्वास के साथ
एक महायात्रा की...
आ रहा हूँ
तुम्हारे पास ,
इसी विश्वास के साथ
कि
दिशा सही है अब
पाने को
दिशा सही है अब
पाने को
मंज़िल अपनी ....
आनंद द्विवेदी
२७/०५/२०११
दिशा सही है अब
जवाब देंहटाएंपाने को
मंज़िल अपनी ....
बहुत सही कहा है इन पंक्तियों में ।
डूबने लगा हूँ मैं
जवाब देंहटाएंखुद में..
करने लगा हूँ
तैयारी
एक महायात्रा की...
आ रहा हूँ
तुम्हारे पास ,
इसी विश्वास के साथ
कि
दिशा सही है अब
पाने को
मंज़िल अपनी bahut badiyaa rachanaa.badhaai aapko.
please visit my blog and leave a comment.thanks.
अब जाकर पूरी हुई है आपकी कविता.. प्रतीक्षा के कितने ही रूप और कितने ही आयाम.. कितने ही रंग आपने दिखाए हैं आपने
जवाब देंहटाएंमैंने भी
जवाब देंहटाएंस्थगित कर दी
आगे की यात्रा,
अनिश्चित का इंतज़ार,
लौट पड़ा हूँ घर को
तुम्हारे शब्दों में जादू है
या मेरे विश्वास में ?... donon taraf vishwaas hai
डूबने लगा हूँ मैं
जवाब देंहटाएंखुद में..
करने लगा हूँ
तैयारी
एक महायात्रा की...
आ रहा हूँ
तुम्हारे पास ,
इसी विश्वास के साथ
कि
दिशा सही है अब
पाने को
मंज़िल अपनी .
प्रबल भावना और विश्वास से भरे हुए ...बहुत गहन भाव ...
बहुत ही सुंदर रचना है आनंद भाई ...!!
आनंद.....
जवाब देंहटाएंक्या लिख जाते हैं आप..
इसी लिए कहती हूँ...."आपकी रचनाओं को
पढ़ने का कुछ और ही आनंद है !!"
अनिश्चित प्रतीक्षा के अंतहीन बनने से पहले ही
खुद की ओर मुड़ जाना श्रेयस्कर है....!
एक बार खुद से साक्षात्कार हो जाए......
फिर आगे की यात्रा सुखद और सरल हो जाती है !!
***पूनम***
बस यूँ.... ही...
(किसी कारणवश comment देने में कुछ प्रॉब्लम है,
पिछले १०-१२ दिनों से.न comment आ रहे हैं और
मुझे भी देने का इससे बेहतर तरीका नहीं सूझ रहा है...!)
मन की अभिव्यक्ति ..जब शब्दों का रूप लेती है तो
जवाब देंहटाएंआप जैसा मन ही उसे महसूस कर सकता है
बहुत खूब लिखा है........प्रेम की अभिव्यक्ति की बहुत सुंदर रूप में ढाल देते है आप आनंद जी
bhut hi jivant aur bhaavo ko abhivakt karti panktiya hai... very nice...
जवाब देंहटाएंकह नहीं सकता
जवाब देंहटाएंकिन्तु ...
डूबने लगा हूँ मैं
खुद में..
करने लगा हूँ
तैयारी
एक महायात्रा की...
विश्वास ही हैजो इस यात्रा पर बढ़ चले हैं कदम ... सुन्दर प्रस्तुति
baut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंडूबने लगा हूँ मैं
जवाब देंहटाएंखुद में..
करने लगा हूँ
तैयारी
एक महायात्रा की...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति्
गूँज गए हैं
जवाब देंहटाएंतुम्हारे शब्द
अंतर्मन में मेरे-
"मुड़ो अपनी ओर..
डूबो खुद में
मैं वहीँ हूँ
तुम्हारे भीतर
मत ढूंढो मुझे बाहर
बस खुद से मिलो ..
मिलो तो एक बार
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति्