सोमवार, 19 अगस्त 2013

शब्द और अर्थ


देख रहा हूँ बैठा बैठा कुछ शब्दों को
जो हमने बोले थे तुमसे
आज खड़े हैं यहीं सामने
उन शब्दों को साथ लिए हैं
जो तुमने बोले थे मुझसे
यह कह-कह कर
'शब्दों में मत अटको जाना'...
'डूबो अर्थों में गहरे तक'
इस तरह शब्दों ने ही डुबो दिया मुझे
तुम अर्थों के साथ
उस पार खड़े मंद मंद मुस्करा रहे थे
और मैंने भी सीखा
प्रेम मुक्त करता है
वह तो अज्ञान है जो निभाने की कोशिश करता है
मोह..... नहीं नहीं आसक्ति
वह भला प्रेम कैसे हो सकता है ...

सूख गयी वो नदी
जहाँ डूबना था मुझे
मैंने भी मुस्कराते हुए पार कर लिया उसे
एक बात कभी कभी याद आ जाती है
"खुसरो दरिया प्रेम का"
मगर अगले ही पल एक बात और याद आती है
"समरथ को नहिं दोष गुसाईं"

खाली समय में मैं भी
अब और लोगों को डूबने की सीख देता हूँ !

- आनंद



6 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा आज {मंगलवार 20/08/2013} को
    हिंदी ब्लॉग समूह
    hindiblogsamuh.blogspot.com
    पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा आज {मंगलवार 20/08/2013} को
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    पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

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