शनिवार, 16 अप्रैल 2011

इन प्यार की बातों से...




मेरे यार की बातों से, इजहार  की बातों से ,
हंगामा तो होना था, इन प्यार की बातों से !

मैं वो ग़मजदा नहीं हूँ  हैरत न करो यारों,
मैं जरा बदल गया हूँ , इकरार की बातों से !

वो उदास सर्द लम्हे, तनहाई ग़म की किस्से,
मेरा लेना देना क्या है,  बेकार की बातों से !

वो कशिश वो शोखियाँ वो, अंदाजे हुश्न उनका 
फुरसत कहाँ है मुझको , सरकार की बातों से  !

मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !

तेरा  रह गुजर नहीं हूँ,  ...ये  खूब जानता  हूँ
तेरे साथ चल पड़ा हूँ , ..ऐतबार की बातों से  !

'आनंद' मयकदे तक पहुंचा तो कैसे पंहुचा ? 
ये राज खुल न जाए,   तकरार की बातों से !

   --आनंद द्विवेदी १६-०४-२०११ 

9 टिप्‍पणियां:

  1. मैं 'वो' ग़मजदा नहीं हूँ हैरत न करो यारों,
    मैं जरा बदल गया हूँ , इकरार की बातों से !

    वो उदास सर्द लम्हे, तनहाई ग़म की किस्से,
    मेरा लेना देना क्या है, बेकार की बातों से !

    बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  2. Vandana ji aapka sneh nirantar mil raha hai mujhe...isse jyada kuchh chahiye bhi nahi.

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  3. मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
    मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !
    waah

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  4. मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
    मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !

    बहुत सुंदर तरीके से आपने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है ....दम निकलने की बात कितना समर्पण दर्शाती है ....आपका आभार

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  5. मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
    मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !

    तेरा रह गुजर नहीं हूँ, ...ये खूब जानता हूँ
    तेरे साथ चल पड़ा हूँ , ..ऐतबार की बातों से !
    Chuninda alfaaz se sajee rachana! Harek panktee dilkash!

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  6. तेरा रह गुजर नहीं हूँ, ...ये खूब जानता हूँ
    तेरे साथ चल पड़ा हूँ , ..ऐतबार की बातों से !

    बेहद खूबसूरत गज़ल ....लाजवाब !

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  7. मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
    मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !
    तेरा रह गुजर नहीं हूँ, ...ये खूब जानता हूँ
    तेरे साथ चल पड़ा हूँ , ..ऐतबार की बातों से !
    वाह .... बहुत खूब कहा है आपने ।

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  8. मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
    मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !
    वाह .... बहुत खूब

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  9. आद० द्विवेदी जी ,

    पूरी ग़ज़ल का रूमानी अंदाज़......क्या कहना !


    "वो कशिश वो शोखियाँ वो अंदाज़े हुश्न उनका

    फुरसत कहाँ है मुझको सरकार की बातों से !

    ********************************अरे भाई , फुरसत की जरूरत ही क्या है ?

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