शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

डगर पनघट की


जो खुशी में खुलकर नाच न सके
दुःख में न बहा सके ज़ार ज़ार आँसू
किसी के कष्ट में
तकलीफ से तड़प न उठे
होगा कोई संत,परमहंस
दुनिया के किस काम का

प्रियतम से नज़रें मिलने के बाद भी
जिसके दिल की गति रहे सामान्य
होठों पर न मचले आह,
न ही नाचे वाह
बेसुध होकर कर न बैठे कुछ का कुछ
होगा कोई विश्वजीत,इंद्रियजीत नरेश
प्रेम के किस काम का

नीर भरी झिलमिलाती आँखों से
एकटक
प्रियतम की तस्वीर को पहरों निहारना
उसे देखकर हँसना, रोना,गाना
ध्यान की कक्षा का पहला पाठ है
और उससे बातें...
मौन से संवाद का प्रवेशद्वार !

प्रेम में नहीं हुआ जा सकता
किस्मत को कोसते हुए
थके कदम लेकर
या कि हानि लाभ का विचार करते हुए
नपे तुले सधे कदम लिए
कोई ज्ञानी ध्यानी बनकर

विवेक और विचार के लिए
सारी दुनिया पड़ी है जान!
अर्थशास्त्र
समाजशास्त्र
और नीतिशास्त्र की,
प्रेम तो एक छलाँग है मीत
जिसने लगा दिया
वही पा सका खुद को
जैसे मैं पा लेता हूँ
तुम्हारी मदिर उन्मीलित आँखों में
अपना सच्चा ठिकाना
अपना अस्तित्व

सुनो !
तुम्हारे होने से
अब जरा भी कठिन नहीं है
डगर पनघट की !

© आनंद

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सुकून


तकली की तरह नाचती जिंदगी में
गट्ठर भर कपास लिए
दूर बैठा है ईश्वर
इधर हलक में अटकी हुई है मेरी जान
ईश्वर और जोर से नचाता है तकली
मेरी नज़र बस धागे पर है
कच्चे सूत सा हमारा प्रेम
अब एक लापरवाह ईश्वर के हाथों में है
पर सुकून ये है कि
ईश्वर और मेरे इस लफड़े में
इस बार
मेरे साथ हो... 
तुम !

© आनंद

रविवार, 10 सितंबर 2017

इश्क़

वो किसी फ़क़ीर की दुआ सा होता है
ठिठुरन भरी सर्दी में अलाव की आँच सा..
इतना ताक़त से लबरेज़
कि उसी से क़ोकहन अपनी शीरी के लिए काट देता है पहाड़
और मुलायम इतना
कि जैसे हवा में उड़ता हुआ कपास का फूल,

कन्नौज के इत्र की खुशबू सा अहसास लिए
वह
दबे पाँव उतरता है एक एक सीढ़ी
पहले आँखों में एक ख़्वाब की तरह
फिर सारे जिस्म में माँ के दूध की तरह
जाँ में उतरता है वो महबूब का तसव्वुर बनकर
और फिर रूह में वंशी की तान की तरह

देखते ही देखते
बदल जाती है ये समूची दुनिया
इश्क़ मुकम्मल कर देता है इंसान को
वो वह नहीं रह जाता
जो वो पहले था ।

बहुत नर्म मिज़ाज़
सलीकेदार,
राह चलते खुशियाँ बाँटने वाला
ख़ुशबू छलकाता हुआ, बेवजह डबडबाई आँखों वाला,
ऐसा कोई शख्स कभी मिले
तो जान लेना उसे प्रेम में
और करना उसके महबूब के लिए
ढेर सारी दुआएँ !

ये दुआ किसी किसी को नसीब होती है
ये ख़ुशबू एक खास इत्र में ही होती है
जिसे चुनता है ईश्वर स्वयं !

© आनंद

रविवार, 3 सितंबर 2017

मेरे अपने

वाह भाई वाह,
ऐसे कैसे कह दूँ कि कोई नहीं है मेरा
भगवान ने दो हाथ पैर दिए हैं
वो भी सलामत,
एक पूरी दुनिया है
(वो दीगर बात है कि बिना तुम्हारे ये दुनिया बेकार लगे...पर है तो)
रिश्ते नाते हैं
(वो दीगर बात है कि बिना तुम्हारे सारे नाते केवल माँग और पूर्ति के नियम की श्रंखला भर हैं... पर हैं तो)
ख़्वाब हैं
(वो बात दीगर है कि तुम्हें पास से छूकर देखने का पहला ख़्वाब आज तक अधूरा है...पर है तो)
आँखें हैं
(वो बात दीगर है कि आँखें खुशियों के नन्हे जुगुनू समेटने की जगह खारे पानी का बेमतलब झरना भर हैं... पर हैं तो)
आँसुओं से अच्छा याद आया
अपने तो सिर्फ़ आँसू हैं,
उतना ही तुम्हें देखकर छलकते हैं 
जितना न देखकर
राम जाने कैसे रह लेते हैं
ग़म और ख़ुशी दोनों के एक से वफ़ादार
काश मैं इनसे सीख पाता कोई सबक ...

काश आँसुओं से भरी अपनी आँखें
मैं
चूम पाता एक बार !

© आनंद

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

अवसाद -2

मैं अपने अँधेरों को घसीटकर प्रकाश में नहीं ले जाना चाहता,
न ही चाहता हूँ अपने तिमिर पर किसी भी प्रकार के उजाले का अवांछित हमला
मैंने नीम अँधेरे में फैलाया है अपना हाथ
किसी साथ के लिये
प्रकाश के लिए नहीं...

मेरे भीरु सपने
घबराते हैं चकाचौंध से
इतना,  कि
जितना घबराता होगा गर्भस्थ भ्रूण
अजन्मी मृत्यु से,
मेरे लिए सुरक्षित आश्रय था तुम्हारा प्रेम
जहाँ मैं साँझ ढले कभी भी रुक सकता था
किंतु एक दिन जब मैं बहुत थका था और हारा भी
उस दिन शाम ढली ही नहीं
तुम ने चुन लिया था प्रकाश को
निरापद,
आश्रित प्रेम किसे भाता भला

प्रकाश एक कर्म है
सूरज का उदय- अस्त होना
चंद्रमा का भी,
दीप जलाना अथवा कोई और जतन करना उजाले की
सबका सब है एक यत्न एक दौड़,
और अँधेरा... वो तो है... बस है
सायास प्रकाश है
अनायास अँधेरा है,
तुम्हारे प्रकाश वरण के बाद...
एक दिन मैंने भी मना कर दिया और दौड़ने से
अब मैं
अँधेरे के खिलाफ़ 
दुनिया के किसी भी षड़यंत्र का हिस्सा नहीं हूँ
और मेरी दुनिया में नही है
प्रकाश का कोई भी हिस्सा ।

© आनंद