शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

स्लॉग ओवर्स

आजकल बहुत व्यस्त हूँ ,
अपनी सारी तैयारियाँ खुद कर जाना
कुछ तो आश्वस्त करता ही है
वैसे भी
मैं भविष्य के अंदेशों में नहीं जीना चाहता 
और मुझे यकीन भी नहीं है
रस्म निभाने वालों पर
असल में मुझे यकीन है ही नहीं किसी पर,


मान लो
चिता पर लिटाने के बाद भी
कोई लकड़ी
कहीं से चुभती रहे तो
क्या कर लूँगा मैं किसी का
उस वक्त फिर ...


बात केवल इतनी सी है
कि मौत के बाद फिर
मैं नहीं महसूस करना चाहता
जिंदगी के कष्ट !

- आनंद

रविवार, 7 सितंबर 2014

अंग्रेजी का एक बड़ा सकारात्मक सा लगने वाला एक शब्द है  कमिटमेंट , मुझे हमेशा विजय/सफलता की कामना और कमिटमेंट अति भौतिकवादी और अहम् को पोषित करने वाले लगते हैं ... कभी हार के देखिये ...मगर अहम् से भरी हुई हार नहीं ...वो तो जैसे ही अहम् को चोट लगेगी आपको तोड़ देगी, हारिये ऐसे जैसे जिंदगी का खेल खेलते खेलते कोई बच्चा हार जाए ..... ऐसे जैसे जीवन की कबड्डी में अपने पाले में लौटने से पहले चुनौतियों के पाले में ही सांस टूट जाए .... हारिये और उसे स्वीकार कीजिये .... उसे एन्जॉय कीजिये ..... कुछ लोग जिंदगी की हर बाजियाँ हार के भी मुस्कराते हुए मिलते हैं !
हार पर छाती पीटना बंद कीजिये और फर्क देखिये
हार को वैसे ही लीजिये जैसे जीत को लेने की योजना थी और फर्क देखिये
एक सच में कठिन काम बोलूं ...
किसी के प्रेम में खुद को और अपने अहम् को हार जाइए ......!

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तुम हार के दिल अपना ......लारे ला रे लला ला ला 

शनिवार, 30 अगस्त 2014

मैं मुस्कराऊँगा

एक दिन मैं मुस्कराऊँगा
(मंद और स्मित मुस्कान)
तुम्हारी  उपलब्धियों पर
और सम भाव से
अपनी नाकामियों पर भी
मैं मुस्कराऊँगा
अपने जीवन पर
ईश्वर की योजनाओं पर
तुम्हारी उपेक्षाओं पर
अपने समर्पण पर
बीत गए समय पर
भविष्य के सपनों पर
अपने सभी अपनों पर ,

मैं निश्चित मुस्कराऊँगा
अपने पागलपन पर
दुनिया की बदक़िस्मती पर
अपने प्रेम पर
दोस्तों की दोस्ती पर
अपनी सभी चालाकियों पर
पहाड़ से दर्द पर
राई से सुकून पर
बेवज़ह जूनून पर
पिता की फटकार पर
माँ के दुलार पर ,

मैं निश्चित ही मुस्कराऊँगा
मंज़िलों की झूठ पर
रास्तों की लूट पर
ताज़े खिले गुलाब पर
अपने सबसे अच्छे ख़्वाब पर
फालतू शिष्टाचार पर
बहनों के प्यार पर
अपने हर कर्म पर
दुनिया के हर धर्म पर
अपनी हर बात पर
जो कभी नहीं हुई उस मुलाकात पर

इनमें से एक भी  नहीं है
मेरे मुस्कराने की वज़ह
मैं तो बस मुस्कराऊँगा
क्योंकि मुस्कराने के लिए नहीं चाहिए
ग़मों की तरह कोई वज़ह !

- आनंद

बुधवार, 27 अगस्त 2014

मौन विदाई का चुप्पा गीत

ये विदाई की तैयारियों वाली एक औसत शाम थी, जिसमें बातें कम थीं, ख़ामोशी ज्यादा; दर्द उससे  भी ज्यादा
दो सच्चे दिल, मगर अलहदा रास्तों के मुसाफ़िर ....
एक ने नज़रें उठाकर कहा
अपना ख़याल रखना
दूसरे ने नज़रें झुकाकर पूछा … "मगर किसके लिए"
अपने लिए …और किसके लिए (पहले ने लगभग डाँटने वाले अंदाज में कहा )
जैसे तुम रखते हो ?
(दूसरे ने पूछना चाहा था मगर पूछ नहीं सका )
हालाँकि वो जिंदगी भर बक बक करता रहा मगर ये बात नहीं पूछ पाया कि
अपना ख्याल रखना इतना जरूरी क्यों होता है
क्यों लोग अपना ख्याल रखने के लिए दूसरों का ख्याल ही नहीं रखते
मगर वह ....
बस इतना ही कह सका
कभी मन करे तो बात कर लेना
मैं अब बहुत परेशान नहीं करूँगा ...
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- आनंद






शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

प्रेम, पदार्थ और पत्थर

हर चीज़ की एक सीमा होती है
हर चीज़ नहीं....  सीमा केवल पदार्थ की होती है

और दर्द  ?

अगर पदार्थ के लिए है तो सीमा है
प्रिय के लिए है तो निस्सीम,

शरीर और उसके कर्म
धरती और दिखाई देने वाला जगत
सब पदार्थ हैं इसीलिए इनकी है एक सीमा,

आकाश
मन
और प्रेम... ये हैं अपदार्थ और असीम
......
अच्छा एक बात बताओ ;
मुझमे जो पदार्थ है वो ख़तम हो जायेगा जब
तो क्या मैं निस्सीम हो जाउँगा ?

तुम पदार्थ के चिंतन से मुक्त होकर अभी निस्सीम हो सकते हो
.......
हम्म्म्म
अच्छा बस एक आख़िरी बात ...
वह कौन सी क्रिया है जिससे इन्सान पत्थर में बदल जाता है

प्रेम
.....
क्याआआआआ ??

हाँ
जो शक्ति पत्थर को इंसान बनाती है
उसी का असंतुलित व्यवहार इन्सान को पत्थर भी बना सकता है
बस एक फर्क है ...

क्या ?

ऐसे लोग दुबारा इंसान नहीं बन पाते फिर ,
भीतर ही भीतर तरसते हैं प्रेम को
मगर अपनाने से डरते हैं,
ठोकर खाए लोग
ठोकरें ही देते हैं बदले में .... !

- आनंद