गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

सपना

छोड़ दूँ
एक ख़ुशबू
तुम्हारे आसपास
एक भरोसा
तुम्हारे भीतर
एक साथ
तुम्हारे अहसासों में
एक गुनगुनाहट
तुम्हारे जीवन में
एक सपना
तुम्हारी आँख में
एक टीस
तुम्हारे एकांत में

फिर चला जाऊँगा
जितनी दूर तुम कहोगी
उतनी दूर
तुम से
जीवन से ...
तब तक देखने दो मेरी
अंधेरे की अभ्यस्त आँखों को
रोशनी का एक सपना
एक सपना
किसी के साथ का !

- आनंद

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

ज़िद्दी बच्चा ...!

एक जिद्दी बच्चा सा है
मेरे ही अंतर्मन का एक हिस्सा
भरी महफ़िल में पकड़कर खींच लेता है
एकांत की तरफ
उत्सव में उदासी की तरफ
चमकती आँखों में आँसू की तरफ
चिर असंतुष्ट कहीं का,
समझाता हूँ, मनचाहा नहीं संभव यहाँ
जबाब देता है ...
कि न्यूनतम है उसकी चाहत
फुसलाने की हर कोशिश नाकाम देख
स्वीकार लेता हूँ झट से हार
'चाँद खिलौना' लगती है अब छोटी से छोटी माँग,

न खुद को न्यूनतम दे सकता हूँ
न उसको
अधिकतम यही संभव है
कि चाहतों से बचा जाए,
पर वो बच्चा
मेरी सुने तब ना !

- आनंद



शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

बिन कहे

तुम हमेशा कहते हो
"बातें तो कोई तुमसे ले ले'
शब्द बुनना तुम्हारा काम है"
पर तुम्हीं देखो
शब्द कितने विवश हैं,
बिन कहे ही लुटाया तुमने
मुझ पर हर रंग,
बिन कहे ही दिन रात धोया मैंने
आँसुओं से तुम्हारी मूर्ति,
बिन कहे ही  चुपचाप करता हूँ
अपने हर सपने का श्रृंगार,
जब जब बिना कहे तुम तोड़ देते हो
एक बारीक धागा ...
मैं रात रात कातता हूँ सूत
और बिना कुछ कहे
बना लेता हूँ एक झोली
अल सुबह बिना कुछ कहे
फैला देता हूँ तुम्हारे सामने
बिन कहे तुम बरसा देते हो उसमें
प्यार या तिरस्कार...
स्वयं की इच्छानुसार,

मेरे अन्दर एक भागीरथ है
बिन कहे ही वो ले आएगा
एक दिन ...तुमको
जन्मों से बंजर
मेरे वज़ूद  की पथरीली ज़मीन पर

मगर सुनो !
क्या तुम नहीं समझ सकते
एक बात  बिन कहे
कि
तुम्हारे बिना
न मेरा कोई अस्तित्व है
न कोई जीवन !

- आनंद





बुधवार, 20 नवंबर 2013

ऐसे ही ठीक हूँ

तुम्हें
न प्रेम चाहिए
न मैं
न साथ
न ही सुख
इतनी कम हैं तुम्हारी चाहतें
कि कभी कभी
तुमसे ईर्ष्या होती है

__________


मन करता है
तुम्हें जोर से आवाज़ लगाऊं
खिलखिलाकर हसूँ
दोनों हाथ फैलाकर
मैदान में सरपट दौडूँ,
पहरों नीले आसमान को देखूँ
उड़ते हुए परिंदों को इशारे से बुलाऊं
बिना सुर और लय की परवाह किये हुए
गाऊं मनपसंद गाना
अरे अंत नहीं है
अगर एक बार मस्ती पे आ जाऊं तो ...

मगर बिस्मिल्लाह ....
तुमसे ही करना चाहता हूँ
और तुम्म तो फिर
तुम ही हो !

मेरा कुछ नहीं हो सकता
मैं ऐसे ही ठीक हूँ  !

शनिवार, 16 नवंबर 2013

ओ प्रवासी परिंदे ...


प्रवासी परिंदे की तरह
तुम
जब उड़ कर आये
मेरे शहर की गलियों में,
मैंने तैयार रखीं थीं
प्रतीक्षारत आँखें
थोड़ा सा इंतज़ार
बहुत सारी उम्मीदें …
और हाँ कुछ बेवकूफ़ियाँ भी,

इस पूरे एक पखवाड़े
मैंने पहने एकदम चमचमाते जूते
रोज कलप और इस्तरी किये कपड़े
ध्यान रखा कि पूरी गोलाई में कटे रहें नाखून
और आईने को एक भी बाल
सफ़ेद नज़र न आये

आज जब तुम लौट रहे हो 
अपने आशियाने की तरफ
मैंने अपने अंदर के शरारती बच्चे को
पीट दिया है बेवजह,
अचानक हो उठा हूँ शांति प्रिय
इतना बूढ़ा  … और थका
कि
अब नहीं दे सकता खुद को
कुछ भी !

- आनंद