एक जिद्दी बच्चा सा है
मेरे ही अंतर्मन का एक हिस्सा
भरी महफ़िल में पकड़कर खींच लेता है
एकांत की तरफ
उत्सव में उदासी की तरफ
चमकती आँखों में आँसू की तरफ
चिर असंतुष्ट कहीं का,
समझाता हूँ, मनचाहा नहीं संभव यहाँ
जबाब देता है ...
कि न्यूनतम है उसकी चाहत
फुसलाने की हर कोशिश नाकाम देख
स्वीकार लेता हूँ झट से हार
'चाँद खिलौना' लगती है अब छोटी से छोटी माँग,
न खुद को न्यूनतम दे सकता हूँ
न उसको
अधिकतम यही संभव है
कि चाहतों से बचा जाए,
पर वो बच्चा
मेरी सुने तब ना !
- आनंद
मेरे ही अंतर्मन का एक हिस्सा
भरी महफ़िल में पकड़कर खींच लेता है
एकांत की तरफ
उत्सव में उदासी की तरफ
चमकती आँखों में आँसू की तरफ
चिर असंतुष्ट कहीं का,
समझाता हूँ, मनचाहा नहीं संभव यहाँ
जबाब देता है ...
कि न्यूनतम है उसकी चाहत
फुसलाने की हर कोशिश नाकाम देख
स्वीकार लेता हूँ झट से हार
'चाँद खिलौना' लगती है अब छोटी से छोटी माँग,
न खुद को न्यूनतम दे सकता हूँ
न उसको
अधिकतम यही संभव है
कि चाहतों से बचा जाए,
पर वो बच्चा
मेरी सुने तब ना !
- आनंद
बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंकिस्मत वाला होता है कोई जब उसका मन न्यूनतम से राजी होना छोड़ दे...और अधिकतम तो बस वही है...वह देखेगा जब कि अब चाहत हद से पार निकल गयी है तो खुदबखुद चला आयेगा...
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