बुधवार, 6 नवंबर 2013

सुनो तुम ...

गोली मारो प्रेम को
हो सके तो कभी एक बात का ख्याल करना
एक जोड़ी गीली आँखें
एक अदद खाली खाली दिल
इनको जैसे तैसे संभाले एक काया
और है...
तुम्हारे पास
तुम्हारे व्यक्तित्व के अतिरिक्त,
जिसका अपना कुछ नहीं
पहचान भी नहीं !

सुनो...! स्टैंडबाई चीज़ें भी
कभी इस्तेमाल न होने पर
इस्तेमाल लायक नहीं रहती फिर !

- आनंद 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

लगा लो दाँव !



तुम्हारी होगी एक्का की तिरियल
तुम जब तक पत्ते खोलते नहीं
मैं चलता जाऊँगा दाँव
अपने 'कलर' के बूते पर ही
तुम चतुर खिलाड़ी होगे
मगर अपने रंग पर मेरा भी भरोसा
अटूट है
तुम सब कुछ जीत के भी हारोगे
मैं सब कुछ हार के भी तुम्हें जिताऊंगा
देखता हूँ पहले 'शो' कौन कराता है

कुछ लोग
पत्ते सामने गिरते ही उठा लेते हैं
पहर भर लगाते हैं गणित
मगर कुछ लोग.… 
छूते भी नहीं पत्ती,
अंधी चल देते हैं
अपनी सबसे अहम बाजी,
इस तरह मुस्कराओ मत
ऐसे लोग केवल हारने के लिए खेलते हैं
क्योंकि सामने जीत रहा होता है
उनका
खुदसे भी ज्यादा अपना

तुम कोई बड़ा दाँव नहीं खेलोगे
जानता हूँ
तुम्हें न खुद पर यकीन है
न अपने पत्तों पर
और न ही मुझ पर
एक तीसरा खिलाड़ी भी है.....  मुकद्दर !
अगली बाज़ी  उस पर ही छोड़ते हैं
अक्सर तुरुप की चाल
उधर से ही आती है !

- आनंद
 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

दिये का जलना !


दिये का जलना
अभिमान नहीं है
(अँधेरा भगाने का )
बड़प्पन नहीं है
(प्रकाश फैलाने का)
दर्द भी नहीं है
(पीड़ा से जलने का )
यह एक सहज क्रिया है
जिसमें शामिल है तीन
एक आग जो जलाती है
एक बाती जो जलती है
एक माध्यम जो बहता है
दोनों के बीच

तुम आग हो
प्रेम माध्यम है
और मैं बाती
जलना सुखद है
दिये का मतलब ही है जलना
उसकी पहचान है यह

दिया बुझता कहाँ है
बुझती है आग
तुम न होते
तो ये सुख
नहीं होता मेरे नसीब में
एक बुझे दिये की पीड़ा से बचाकर
मुझे जलाये रखने के लिए
दिल से शुक्रिया मेरे मीत !

- आनंद


गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

चाहतें ......!

   

चाहते हैं कि
थमने का नाम नहीं ले रही
जिंदगी है कि
छदाम देने को राजी नहीं
दिल है कि
जान लेकर ही मानेगा
तुम हो कि
कोई फर्क ही नहीं पड़ता
 ...  

ना जाने... कितना बड़ा होता है
एक आदमी,
खाक़ नहीं होता
वर्षों जलने के बाद भी,
रक्तबीज की तरह
जिन्दा हो उठता है
अपनी ही
किसी चाहत से फिर
...

कुछ न चाहना भी
एक चाहत है
तुम्हारी नज़रों में
थोड़ा और भला बनने के लिए
मिटने की चाहत भी
एक चाहत है
हमेशा बने रहने की
...

आ जाओ मृत्यु
सौंप दूं तुम्हें, अपनी
हर चाहत
कि जिंदगी को
इनमे से, एक भी
स्वीकार्य नहीं
और ना ही स्वीकार है मुझे
इनमें कोई संसोधन
...

कुछ चाहतें
चाहतें नहीं होती
दरअसल
वो जीवन होती हैं
मुझे भी पहले
ये बात पता नहीं थी

 - आनंद






सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

वरदान अकेलापन !

जिस अकेलेपन को 
जीवन भर कोसता रहा
दुख मनाता रहा जिसका
वही अब  सुख है
अमृत है,

नहीं होता जब कहीं कोई
पसरता है मीलों सन्नाटा
छूट जाती है दुनिया पीछे
छूट जाता है सारा कारोबार
सपने, आशाएँ
उदासियाँ निराशाएँ … भय
सब के सब

तब
अचानक आकर तुम्हारा अहसास
लिपट जाता है रूह से मेरी
मैं जीता हूँ तुमको …पा लेता हूँ खुद को,
निपट तन्हाई में तुम और मैं
आख़िर यही तो थी मेरी कल्पना
युगों से
जन्मों से,

एक सोच
एक जीवन
और एक दुनिया,
जादूगर!
तुम चाहो तो क्या नहीं बदल सकते !!

- आनंद