शनिवार, 15 जनवरी 2011

लोग उकता गए


सब्जबागों को अपने मन में सजाये रखिये,
लोग उकता गए, माहौल बनाये रखिये !

सच तो ये है कि खोखले हैं सभी आतिशदान,
रोशनी होगी ही कुछ, दिल को जलाये रखिये !

आज चौराहे  पर छाया है, गज़ब सन्नाटा ,
द्रोपदी लुट रही, सर अपना झुकाए रखिये !

आज हर चाँद, हमें दागदार लगता है,
पाप को पाक लिबासों में छिपाए रखिये!

बड़ों कि गन्दगी दौलत में छिप गयी यारों,
'वो' बड़े हैं, दुआ - सलाम बनाये रखिये !

बच्चियां, घर से निकलने मे सहम जाती हैं,
आप कहते हो, एहतराम बनाये रखिये ??

मत सुनो मत सुनो, 'आनंद' की बातें लेकिन,
यारों, इंसान को इंसान बनाये रखिये !!

    --आनन्द द्विवेदी १५-०१-२०११

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

अपना कंप्यूटर !

अपना कम्पूटर जो है न
कभी इसके बारे में भी सोंचा है आपने  ?
यह महज़ विज्ञान नही
महज़ इन्जिनिअरिंग का कमाल भी नही है
इसे केवल मशीन कहकर इसका अपमान न करो
ये तो जीवंत  मित्र है  जी
मित्रता की कसौटी पर सौ पैसे खरा
आशा -निराशा का साथी
सुख - दुःख का साथी !

किसी ज़माने के आज्ञाकारी पुत्र से ज्यादा  आज्ञाकारी
आज के स्मार्ट बेटे से ज्यादा स्मार्ट ,
किसी ज़माने की आदर्श पत्नी से जयादा कहना मानने  वाला
और आज की स्मार्ट डार्लिंग से ज्यादा विश्वसनीय ,
इसका 'वायरस'
'हमारे वायरस' से जल्दी और सस्ते में दूर हो जाता है ,
अब साथी है तो कुछ न कुछ खर्च तो आएगा ही
पर मैंने कुल जमा जोड़ घटाव करके देख लिया है
मेरे इस मित्र का "ए म सी " का साल भर का खर्च
हमारे मेडिकल इंश्योरेंस की किस्त का आधा....और
श्रीमती जी को किसी खास मौके पर दिए जाने वाले
'सबसे सस्ते' गिफ्ट के खर्च के लगभग बराबर ही बैठता है,

तनहाइयों का साथी  और
महफ़िलों का सूत्रधार ,
स्मृतियाँ सहेजता है
मित्र बनाता है
रिश्ते बनाता है
रिश्ते निभाता है
किसी भी बात का बुरा नही मानता ,
हमसे कुछ भी तो नही चाहता बदले में,
क्या ऐसा कोई और है हमारे जीवन में
कम से कम मेरी जानकारी में तो नही !!

    --आनन्द द्विवेदी १४-०१-२०११

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

ईश्वर देखता हूँ मैं !


एक अँधेरी गुफा...
अस्पष्ट भित्तियों पर उभरा है
बिलकुल स्पष्ट  ...हर दृश्य जिंदगी का !

इसमें है ....
घुट गया स्वाभिमान..
दुकानों पर उधार के बदले,
तौले गए सामन सा पैक है 'प्यार'.
एक विशेष लिफाफे में
मैंने पाया है इसे (प्यार को)
तराजू पर सारी जिंदगी चढाने के बाद!!

इसमें है....
इच्छाओं का संग्रह
उचित या अनुचित जो भी की हैं मैंने ईश्वर से
पाया है मैंने हर बार....
कुछ न पाने का विश्वाश,
देखा है अपने हर सपने को झूठ होते हुए,
इतने करीब से कि
मैं ही झूठा हो गया मालूम होता हूँ !!

इसमें है.....
एक आशा किसी को पाने की
नही-नही....
किसी पर न्योछावर हो जाने की,
झूठ या सच
वही जाने !

इसमें है....
एक ईश्वर 'भी'..
जो आँखों में झिलमिलाते मोतियों के बिम्ब में
बहुत धुंधला दिखाई देता है ,
जब कभी मैं....
नीलाम हो रहा होता हूँ किसी अनचाही जगह,
जब कभी मैं....
ख़रीदा जा रहा होता हूँ कहीं ताकत से,
जब कभी मैं....
टूट रहा होता हूँ किन्ही मजबूरियों से,
तब-तब...
मैं ईश्वर देखता हूँ,
बेबस अपने अन्दर........और....
मुस्कराता हुआ अपने बाहर !!

       --आनंद द्विवेदी २०-०१- १९९३ !

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

एक आनंद वहाँ भी है जहाँ

हो लिया प्यार अब चला जाए
व्यर्थ क्यों बर्फ सा गला जाए

बंद कमरे में  कौन  देखेगा
आइये  दीप  सा, जला जाये

उनसे मिलने कि ख़्वाहिशें हैं पर
मिला जाए तो क्यों  मिला  जाए

दूर  हूँ या कि  पास  हूँ उनके
नापने  कौन  फासला जाए

जिंदगी पड़ गयी  छोटी  मेरी
कब्र तक ग़म का सिलसिला जाए

इतना मरहम कहाँ से आएगा
जख्म पर जख्म ही मला जाए

एक 'आनंद' वहां भी है जहाँ,
बेवजह आँख छलछला जाए

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

अपनी 'कुसुम' के लिए !

         अपनी 'कुसुम' के लिए !

क्या खूब रिश्ता है पति और पत्नी का 
केवल...
नर और नारी का नहीं
केवल....
गाड़ी के दो पहियों का भी नहीं
केवल.... दो मित्रों 
अथवा अमित्रों (शत्रुओं नहीं कहूँगा) का भी नहीं,
फिर ??????
ये है 
एक व्यक्ति के रूप में हमारी पूर्णता का रिश्ता!!

हमारी स्वच्छान्दाताओं पर अंकुश लगती 
'वो' बहुत बुरी है, 
कड़ाके की सर्दी में सुबह-सुबह आलू के गर्मागर्म परांठे बनाती हुई,
टूट गए बटन को गिरने से पहले ही टांकती हुई ,
खुद की चाय ठंढी हो रही है इसकी परवाह न करती हुई...
'वो' बहुत अच्छी है,

आपको पता है 'वो' बुरी क्यूँ है ???
कमबख्त याचना नहीं अधिकार से जीने की इच्छा करती है...
प्रकृति का  बनाया हुआ समानता का सहज अधिकार !
बस्स्स .यही है सारी बुराइयों की जड़ !

आपको पता है, 'वो' अच्छी क्यूँ है ???
उसने निजता को मार दिया है, 
अपने लिए कभी नहीं सोंचा, 
और अपने बच्चे, अपना परिवार अपना पति
यही है उसकी दुनिया, यही है उसकी खुशियाँ
जब शाम ढलती है न...
चाहे वो दिन की हो या  जीवन की 
तब हमें उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है!
हम आश्वस्त रह सकते हैं....
अभी सदियों तक 
'वो' 'अच्छी' ही रहेगी !!
शायद 'वो' हमेशा ही 'अच्छी' रहे
क्योंकि 'वो' अच्छी है !!

        --आनंद द्विवेदी 
         ३१/१२/२०१०