गुरुवार, 29 नवंबर 2012

कोई आवाज़ न आये तो खुशी होती है

शाम तनहा चली जाए तो खुशी होती है
इन दिनों  कोई रुलाये तो खुशी होती है

उम्र भर उसको पुकारा करूँ दीवानों सा
कोई आवाज़ न आये तो खुशी होती है

तेरे आगोश के जंगल में हिना की खुशबू
आजकल याद न आये तो खुशी होती है

दोस्ती दर्द से ऐसी निभी कि पूछो मत
अब खुशी पास न आये तो खुशी होती है

चाहे जीते जी लगाये या बाद मरने के
आग़ अपना ही लगाये तो खुशी होती है

जहाँ में कोई सबक मुफ़्त नहीं मिलता है
जिंदगी फिर भी सिखाए तो खुशी होती है

ख़्वाब 'आनद' के टूटे तो  इस कदर टूटे
अब कोई ख़्वाब न आये तो खुशी होती है

-  आनंद


सोमवार, 26 नवंबर 2012

आना-पाई हिसाब आया है



मेरे हिस्से  अज़ाब  आया  है
और  उनपे  शबाब आया है

एक क़तरा भी धूप न लाया
बेवजह आफ़ताब  आया है

पहले खत में नखत निकलते थे
बारहा   माहताब  आया  है

खुशबुएँ  डायरी से गायब हैं
हाथ, सूखा गुलाब आया है

मुझको इंसान बुलाना उनका
क्या कोई  इंकलाब  आया है

अब वहां कुछ नहीं बचा मेरा
आना-पाई हिसाब आया है

मेरा मुंसिफ  मेरे गुनाहों की
लेके मोटी किताब आया है

पहले 'आनंद' था ज़माने में
धीरे-धीरे हिज़ाब  आया है

- आनंद





रविवार, 25 नवंबर 2012

निजता की राह

अपनी ओर
जाने वाला कोई भी रास्ता
नहीं है
पहले से निर्धारित
इसीलिये होती है बड़ी मुस्किल
अनुसरण करने वालों को
बहुत कठिन है
हर समय
खुद के ही अहंकार द्वारा लगाये गए
दिशा और दूरी सूचक
सूचना पटों से बच पाना

हर पल अनिश्चित,
निपट एकांतिक सफर में
बड़े काम की होती है दीवानगी खुद से मिलने की
और जिद खुद को मिटाने की
जब पाने को कुछ न हो ... इच्छा भी नहीं
तब शुरू होती है अपनी पहली झलक
अगर कुछ पाना शेष है
तो फिर वहीँ ठहरिये
चमकते हुए राजमार्ग पर

क्योंकि निजता की पगडंडी
नहीं देती कुछ भी
सिवाय मुक्ति के !

 - आनंद


शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

सूचनार्थ ...

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रंगमंच







एक नाटक में 
मुझे पति का किरदार मिला 
तुम्हें पत्नी का 
दोनों खरे नही उतरे 
वैसे तुम
जब भी माँ का किरदार करती हो
गज़ब जान डाल देती हो
और पिता का रोल तो मैं भी ठीक ठाक निभा लेता हूँ 
एक बार प्रेयसी का रोल करो ना 
तुम्हें इस किरदार में देखना
मेरी गिनी चुनी अधूरी इच्छाओं में से एक है !

मैं जानता हूँ 
जिंदगी के इस रंगमंच पर
न तुम्हारी इच्छा कोई मायने रखती है 
और न ही मेरी 
वैसे भी नाटक में पात्रों का निर्धारण 
पात्रों की इच्छा पर नही 
निर्देशक की इच्छा पर होता है 
अब देखो न 
तुम मुझे राम के किरदार में देखना चाहती थी 
मगर मुझे मिला 'रमुआ' का 
ठीक वैसे ही ..जैसे 
मैं तुम्हें गांधारी के किरदार में देखना चाहता था 
पर तुम्हें मिला 
'अम्बा' का |

जब भी नाटक का पटाक्षेप होगा 
पात्र नहीं 
अभिनय याद किया जाएगा 
आओ हम दोनों
अपने अपने किरदारों को जीवंत करे 
क्योंकि 
यही हमें करना है !!

-
आनंद  
२२ मई २०१२ !