शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

अपनी 'कुसुम' के लिए !

         अपनी 'कुसुम' के लिए !

क्या खूब रिश्ता है पति और पत्नी का 
केवल...
नर और नारी का नहीं
केवल....
गाड़ी के दो पहियों का भी नहीं
केवल.... दो मित्रों 
अथवा अमित्रों (शत्रुओं नहीं कहूँगा) का भी नहीं,
फिर ??????
ये है 
एक व्यक्ति के रूप में हमारी पूर्णता का रिश्ता!!

हमारी स्वच्छान्दाताओं पर अंकुश लगती 
'वो' बहुत बुरी है, 
कड़ाके की सर्दी में सुबह-सुबह आलू के गर्मागर्म परांठे बनाती हुई,
टूट गए बटन को गिरने से पहले ही टांकती हुई ,
खुद की चाय ठंढी हो रही है इसकी परवाह न करती हुई...
'वो' बहुत अच्छी है,

आपको पता है 'वो' बुरी क्यूँ है ???
कमबख्त याचना नहीं अधिकार से जीने की इच्छा करती है...
प्रकृति का  बनाया हुआ समानता का सहज अधिकार !
बस्स्स .यही है सारी बुराइयों की जड़ !

आपको पता है, 'वो' अच्छी क्यूँ है ???
उसने निजता को मार दिया है, 
अपने लिए कभी नहीं सोंचा, 
और अपने बच्चे, अपना परिवार अपना पति
यही है उसकी दुनिया, यही है उसकी खुशियाँ
जब शाम ढलती है न...
चाहे वो दिन की हो या  जीवन की 
तब हमें उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है!
हम आश्वस्त रह सकते हैं....
अभी सदियों तक 
'वो' 'अच्छी' ही रहेगी !!
शायद 'वो' हमेशा ही 'अच्छी' रहे
क्योंकि 'वो' अच्छी है !!

        --आनंद द्विवेदी 
         ३१/१२/२०१०

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

हमसे पूछिए !


उनकी हसीन जुल्फ के साये में जान दी
सरकार खुदकसी का मजा हमसे पूछिए

न अपनी कुछ खबर है न उनका कुछ पता है
सरकार दिल्लगी का मजा हमसे पूछिए

उनकी नशीली आँख से इक जाम क्या पिया
सरकार बेखुदी का मजा हमसे पूछिए

वो हैं, उन्ही कि याद है, दुनिया उन्ही कि है
सरकार  आशिकी का मज़ा हमसे पूछिए

उनको सुनाया हाले दिल तो 'वो' भी हंस पड़े
सरकार 'उस' हंसी का मज़ा हमसे पूछिए

'आनंद' की बाते हैं, या गम का फ़साना है
सरकार गमज़दी का मज़ा हमसे पूछिए

   
 ---आनंद द्विवेदी  १९/०२/२००९

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

प्यार क्या करूँ ?


मैं भूख से बेहाल, तेरा प्यार क्या करूँ
घर में नही है 'दाल', तेरा प्यार क्या करूँ

ये जिंदगी है यारों कब किसको बख्सती है
मैं हो रहा हलाल, तेरा प्यार क्या करूँ

आत्मा के बेंचने को, ग्राहक तलासता हूँ
मैं हो गया दलाल, तेरा प्यार क्या करूँ

आदर्श, भावनाएं, जज़्बात , सब रेहन हैं
केवल बची है खाल, तेरा प्यार क्या करूँ

कमबख्त भूख ने तो इन्सान खा लिया है
बस है यही मलाल, तेरा प्यार क्या करूँ

दुनिया की हर गणित से, वज़नी गणित हमारा
रोटी अहम् सवाल , तेरा प्यार क्या करूँ

'आनंद' बिक चुका है, कब का भरे चौराहे
अच्छा मिला है माल, तेरा प्यार क्या करूँ

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

दर्द की फ़सल था वो ...



ख़ुशी से तर-ब-तर हसीन,'एक' पल था वो,
मगर वो आज नहीं है  ज़नाब कल था वो!

राख़ के ढेर में, बैठा तलासता हूँ जिसे,
रात को जल गया, नाचीज़ का महल था वो!

वक़्त भी पंख लगा के उड़ा, तो फिर न मिला, 
आपका 'वक़्त' था, मेरे लिए ग़ज़ल था वो!

अपने घर से ही जो निकला, थके कदम लेकर,
लोग कहते हैं, गली की चहल पहल था वो  !

लोग पहचानने से भी , मुकर गए जिसको,
आपके प्यार की, बिगड़ी हुई शकल था वो!

सर झुकाए हुए , जिल्लत से, पी गया यारों,
घूंट पर  घूंट,  ज़माने का हलाहल था वो !!

आपकी झील सी आँखों में, बसा करता था,
किसी ने तोड़ दिया है, खिला कमल था वो !

बहुत गरीब था 'मनहूस',  मर गया होगा,
नाम 'आनंद' मगर , दर्द की फसल था वो!!

२० फ़रवरी १९९३ ..!

'वो' नहीं था मैं...



यूँ खुश तो क्या था, मगर गमजदा नहीं था मैं,
तुम मुझे 'जो' समझ रहे थे, 'वो' नहीं था मैं |

मेरी  बर्बाद   दास्ताँ , है  कोई   ख़ास   नहीं,
जब मेरा घर जला, तो आस पास ही था मैं |

चंद  लम्हे, जो  मुझे  जान से  भी  प्यारे  थे,
उनकी कीमत पे मैं बिका,मगर सही था मैं |

दुश्मनो को भी सजा, प्यार की ऐसी न मिले,
मेरी चाहत थी कहीं और,और कहीं था मैं |

तुमने  बेकार   मेरा  क़द  बढा  दिया   इतना,
फलक तो क्या जमीन पर भी कुछ नहीं था मैं |

घर  उदासी  ने  बसाया है, जहां   पर  आकर,
शाम तक उस जगह 'आनंद' था, वहीं था मैं |

      -----आनंद द्विवेदी. २८/१२/२०१०