बुधवार, 29 दिसंबर 2010

प्यार क्या करूँ ?


मैं भूख से बेहाल, तेरा प्यार क्या करूँ
घर में नही है 'दाल', तेरा प्यार क्या करूँ

ये जिंदगी है यारों कब किसको बख्सती है
मैं हो रहा हलाल, तेरा प्यार क्या करूँ

आत्मा के बेंचने को, ग्राहक तलासता हूँ
मैं हो गया दलाल, तेरा प्यार क्या करूँ

आदर्श, भावनाएं, जज़्बात , सब रेहन हैं
केवल बची है खाल, तेरा प्यार क्या करूँ

कमबख्त भूख ने तो इन्सान खा लिया है
बस है यही मलाल, तेरा प्यार क्या करूँ

दुनिया की हर गणित से, वज़नी गणित हमारा
रोटी अहम् सवाल , तेरा प्यार क्या करूँ

'आनंद' बिक चुका है, कब का भरे चौराहे
अच्छा मिला है माल, तेरा प्यार क्या करूँ

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

दर्द की फ़सल था वो ...



ख़ुशी से तर-ब-तर हसीन,'एक' पल था वो,
मगर वो आज नहीं है  ज़नाब कल था वो!

राख़ के ढेर में, बैठा तलासता हूँ जिसे,
रात को जल गया, नाचीज़ का महल था वो!

वक़्त भी पंख लगा के उड़ा, तो फिर न मिला, 
आपका 'वक़्त' था, मेरे लिए ग़ज़ल था वो!

अपने घर से ही जो निकला, थके कदम लेकर,
लोग कहते हैं, गली की चहल पहल था वो  !

लोग पहचानने से भी , मुकर गए जिसको,
आपके प्यार की, बिगड़ी हुई शकल था वो!

सर झुकाए हुए , जिल्लत से, पी गया यारों,
घूंट पर  घूंट,  ज़माने का हलाहल था वो !!

आपकी झील सी आँखों में, बसा करता था,
किसी ने तोड़ दिया है, खिला कमल था वो !

बहुत गरीब था 'मनहूस',  मर गया होगा,
नाम 'आनंद' मगर , दर्द की फसल था वो!!

२० फ़रवरी १९९३ ..!

'वो' नहीं था मैं...



यूँ खुश तो क्या था, मगर गमजदा नहीं था मैं,
तुम मुझे 'जो' समझ रहे थे, 'वो' नहीं था मैं |

मेरी  बर्बाद   दास्ताँ , है  कोई   ख़ास   नहीं,
जब मेरा घर जला, तो आस पास ही था मैं |

चंद  लम्हे, जो  मुझे  जान से  भी  प्यारे  थे,
उनकी कीमत पे मैं बिका,मगर सही था मैं |

दुश्मनो को भी सजा, प्यार की ऐसी न मिले,
मेरी चाहत थी कहीं और,और कहीं था मैं |

तुमने  बेकार   मेरा  क़द  बढा  दिया   इतना,
फलक तो क्या जमीन पर भी कुछ नहीं था मैं |

घर  उदासी  ने  बसाया है, जहां   पर  आकर,
शाम तक उस जगह 'आनंद' था, वहीं था मैं |

      -----आनंद द्विवेदी. २८/१२/२०१०

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

काश तुम होते.....!

आपका साथ,  उम्रभर होता,
कितना फिरदौस ये सफ़र होता !

आपका प्यार जो पाया होता ,
मुझे पहचानता  शहर होता !

तेरे सीने में अगर दिल होता,
मेरी आवाज का असर होता!

आते-जाते नजर मिला करती,
तेरे कूचे में अगर घर होता !

आपकी जुल्फ का हंसी मंज़र ,
काश ये ख्वाब बेनज़र होता !

सोंचता हूँ जो आप न होते,
आज 'आनंद' दर-ब-दर होता !!

   --आनंद द्विवेदी
२७/१२/२०१०

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

खुदा भला करे इनके खरीददारों का

रंग हल्का नही होगा कभी दीवारों का,
उसने ले रखा है ठेका, यहाँ बहारों का !

लोग थकते नही  करते सलाम दरिया को,
हाल पूछेगा कौन ढह रहे किनारों का  !

ईद का चाँद आपको भी नज़र आ जाये,
काम फिर क्या बचेगा, सोंचिये मीनारों का ?

गौर से देखिये हर चीज़ यहाँ बिकती है,
खुदा भला करे, इनके खरीददारों का !

मैंने हर जख्म करीने से सजा रखा है,
दिल भी अहसानफरामोश नही यारों का !

तमाम मुल्क का दुःख दर्द दूर कर देंगे,
चल रहा इन दिनों अनशन 'रंगे सियारों' का ! 

भूख कि छत तले 'आनंद' दब गया यारों,
दोष इसमें नही, टूटी हुई दीवारों का  !!