सुबह उगते हुए सूरज को देखना
देखना ओस की कोई अकेली बूँद
खय्याम की रुबाई से रूबरू होना
या फिर गुनगुनाना मीर की ग़ज़ल
आफिस की मेज़ को बना लेना तबला
और पल भर को जी लेना बचपन
ऐसा ही कुछ कुछ है तुम्हारा अहसास
जिसे मैं ठीक से कह नहीं पा रहा हूँ
कभी सुनो मेरे ठहाकों में खुद को
कभी पढ़ो मेरे आँसुओं में अपनी कविता
कि ढूंढो मेरे अंधेरो में अपनी छाया
और लहलहाओ मेरे मौन में बनकर सरगोशियों की फ़सल
युगों से तुम्हें कहने की कोशिश में हूँ
मगर एक भी उपमा नहीं भाती मन को
रह जाते हो तुम हमेशा ही अकथ
जैसे अनकही रह गयी मेरी वेदना
अनलिखी रह गयी मेरी कविता
जैसे अनछुआ रह गया एक फूल
जैसे अनहुआ रह गया मेरा प्रेम
कि जैसे अनजिया बीत गया एक जीवन
सुनो !
कहीं तुम भी
किसी का जीवन तो नहीं ?
© आनंद
वही तो है...जीवन..किसी एक का नहीं ..हर एक का..
जवाब देंहटाएंनिमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/