बेंच डाला घर किराएदार ने
रूह तक कब्ज़ा किया व्यापार ने
छटपटाता वक़्त, बेपरवाह हम
हाल ऐसा कर दिया बाज़ार ने
ज़िंदगी का इम्तहाँ मैं पास था
फेल मुझको कर दिया रफ़्तार ने
दूरियों की आँच यूँ भी कम न थी
आग में घी कर दिया सरकार ने
लज़्ज़त-ए-नाराजगी भी खूब है
जब कभी दिल से मनाया यार ने
अब खुशी में भी कहाँ 'आनंद' है
ठग लिया जबसे भले व्यवहार ने
शुक्र बन्दे का ख़ुदा का शुक्रिया
जो किया अच्छा किया संसार ने
© आनंद
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २१ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
बहुत बढिया पोस्ट, लौटिए ब्लॉगिंग की दुनिया में।
जवाब देंहटाएंजानिए क्या है बस्तर का सल्फ़ी लंदा
'बेच डाला घर, किरायेदार ने' बहुत ख़ूब ! सरकार ऐसी ही मेहरबान रही तो फिर हमारा-आपका घर ही नहीं, बल्कि हमको-आपको भी बेच देगी.
जवाब देंहटाएंYe kitna marmsparshi hai!
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