बुधवार, 23 जनवरी 2013

आदमी मैं आम हूँ




वक़्त का ईनाम हूँ या वक़्त पर इल्ज़ाम हूँ,
आप कुछ भी सोचिये पर आदमी मैं आम हूँ

कुछ दिनों से प्रश्न ये आकर खड़ा है सामने,
शख्सियत हूँ सोच हूँ या सिर्फ़ कोई नाम हूँ

बिन पते का ख़त लिखा है जिंदगी ने शौक़ से,
जो कहीं पहुंचा नहीं, मैं बस वही पैगाम हूँ

कारवाँ को छोड़कर जाने किधर को चल पड़ा
राह हूँ, राही हूँ या फिर मंजिलों की शाम हूँ

है तेरा अहसास जबतक, जिंदगी का गीत हूँ
बिन तेरे, तनहाइयों का अनसुना कोहराम हूँ

दुश्मनों से क्या शिकायत दोस्तों से क्या गिला
दर्द  का 'आनंद' हूँ  मैं,  प्यार  का अंजाम हूँ

- आनंद 

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  2. है तेरा अहसास जब तक जिंदगी का गीत हूँ
    बिन तेरे तनहाइयों का अनसुना कोहराम हूँ

    अति सुंदर पंक्तियाँ..

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  3. वक्त का ईनाम हूँ या वक्त पे इल्जाम हूँ..,
    मानिए न मानिए पर आदमी मैं आम हूँ..,

    रोजे-दर-रोज मैं सवालात के रूबरू..,
    शख्स हूँ के शख्सियत या के सिर्फ नाम हूँ.....

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  4. वाह! बहुत ही सुंदर ! हर शेर लाजवाब है !
    ~सादर!!!

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