वक़्त का ईनाम हूँ या वक़्त पर इल्ज़ाम हूँ,
आप कुछ भी सोचिये पर आदमी मैं आम हूँ
कुछ दिनों से प्रश्न ये आकर खड़ा है सामने,
शख्सियत हूँ सोच हूँ या सिर्फ़ कोई नाम हूँ
बिन पते का ख़त लिखा है जिंदगी ने शौक़ से,
जो कहीं पहुंचा नहीं, मैं बस वही पैगाम हूँ
कारवाँ को छोड़कर जाने किधर को चल पड़ा
राह हूँ, राही हूँ या फिर मंजिलों की शाम हूँ
है तेरा अहसास जबतक, जिंदगी का गीत हूँ
बिन तेरे, तनहाइयों का अनसुना कोहराम हूँ
दुश्मनों से क्या शिकायत दोस्तों से क्या गिला
दर्द का 'आनंद' हूँ मैं, प्यार का अंजाम हूँ
- आनंद
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंहै तेरा अहसास जब तक जिंदगी का गीत हूँ
जवाब देंहटाएंबिन तेरे तनहाइयों का अनसुना कोहराम हूँ
अति सुंदर पंक्तियाँ..
sundar gazal anand bhai
जवाब देंहटाएंwaah bahut khub
जवाब देंहटाएंवाह! वाह ! क्या बात है !
जवाब देंहटाएंNew post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !
वक्त का ईनाम हूँ या वक्त पे इल्जाम हूँ..,
जवाब देंहटाएंमानिए न मानिए पर आदमी मैं आम हूँ..,
रोजे-दर-रोज मैं सवालात के रूबरू..,
शख्स हूँ के शख्सियत या के सिर्फ नाम हूँ.....
वाह! बहुत ही सुंदर ! हर शेर लाजवाब है !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
shukriya doston
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